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________________ पूजा उपकरणों का संक्षिप्त परिचय एवं ऐतिहासिक विकास क्रम ...207 पूजा उपकरणों का स्वरूप इस प्रकार है मोरपिच्छी (लोमहस्तक) - मोर के पंखों से निर्मित एक प्रकार का छोटा झाडू जिससे जिनबिम्ब की प्रमार्जना की जाती है, इसे मोरपिच्छी या लोमहस्तक कहते हैं। जिनबिम्ब पर रहे हुए फूल आदि निर्माल्य, वासक्षेप, सूक्ष्म जीव-जन्तु आदि दूर करने के लिए मोरपिच्छी का प्रयोग किया जाता है। पूर्व काल में इसे लोमहस्तक कहा जाता था। मोरपंख अत्यंत मृदु एवं कोमल होने के कारण जीवों को पीड़ा पहुँचाए बिना उन्हें दूर करता है तथा किसी भी प्रकार की बाह्य अशुद्धि को ग्रहण नहीं करता । दिगम्बर मुनियों के द्वारा रजोहरण के स्थान पर मयूरपिच्छीका ही प्रयोग किया जाता है । पूंजनी - ऊन या सुतली से निर्मित छोटा सा चरवला या झाडू जैसा उपकरण पूंजनी कहलाता है। जिन प्रतिमा के आस-पास पबासन आदि की सफाई एवं जीवों की जयणा हेतु पूंजनी का प्रयोग किया जाता है। इसमें प्रयुक्त ऊन आदि रेशमी एवं कोमल होने से जीवों की जयणा में सहायभूत बनते हैं। संमार्जनी - गर्भगृह एवं रंगमंडप आदि के भूमितल या जमीन की प्रमार्जना के लिए जिस कोमल झाडू का प्रयोग किया जाता है उसे संमार्जनी कहते हैं। आम बोल-चाल की भाषा में इसे झाडू कहा जाता है। भूमि प्रमार्जन हेतु प्रयोग किया जाने वाला यह झाड़ू कोमल एवं मृदु होना चाहिए ताकि चींटी आदि जीवों को जयणा पूर्वक हटाया जा सकें। वासक्षेप मंजूषा- प्रात: काल में जिन प्रतिमा का प्रक्षाल करने से पूर्व वासचूर्ण या गंध से जिनपूजा की जाती है। उस वासचूर्ण को रखने हेतु जिस डिब्बी का प्रयोग किया जाता है उसे वासक्षेप मंजूषा कहते हैं। वासक्षेप रखने हेतु प्लास्टिक की डिब्बी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। चाँदी या सोने से निर्मित छोटी-छोटी डिब्बी मंजूषा के रूप में उपयोग में लेनी चाहिए। भृंगार कलश- सोने-चाँदी आदि से निर्मित नाली युक्त उपकरण को कलश या भृंगार कलश कहा जाता है। इसका प्रयोग जल, दूध, पंचामृत आदि से परमात्मा का अभिषेक करने हेतु करते हैं। इसे नालीदार कलश, भृंगार कलश या कलश भी कहा जाता है। वृषभ कलश- वृषभ आकृति का चाँदी आदि से निर्मित उपकरण जो कि कलश रूप में प्रयुक्त किया जाता है उसे वृषभ कलश कहते हैं। स्नात्र पूजा के
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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