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________________ मन्दिर जाने से पहले सावधान ... 197 इस प्रकार मन्दिर सम्बन्धी यह 84 उत्कृष्ट आशातनाएँ मानी गई हैं। 3 मन्दिर परिसर में इनसे बचने का प्रयास करना चाहिए । उक्त वर्णित छोटी-छोटी क्रियाएँ अविवेक या जाने-अनजाने में करने पर भारी कर्म बंधन का कारण बनती हैं। वर्तमान में इनमें से कई क्रियाएँ श्रावक वर्ग द्वारा करते हुए देखी जाती हैं जैसे कि जूते - - चप्पल आदि पहनकर या गाड़ी में पूजा करने जाना एक आम बात है। इसी प्रकार मंदिर में मोबाईल का प्रयोग करना भी आम बात है। उत्तरासंग धारण करने की परम्परा तो प्रायः दर्शनार्थी वर्ग में समाप्त हो चुकी है। दर्पण के माध्यम से तिलक लगाते हुए बाल संवारना, देवद्रव्य के सम्बन्ध में उपेक्षा करना, देवी-देवताओं के प्रति बढ़ती श्रद्धा आदि सामान्य लगने वाली क्रियाएँ भी जिनेश्वर परमात्मा की आशातना है। यदि श्रावक वर्ग चाहें तो सहज रूप में इनसे बच सकते हैं। थोड़ा सा विवेक, उपयोग, जागृति एवं श्रद्धा जिनमंदिर सम्बन्धी आशातनाओं से रक्षण कर सकती है। आजकल मंदिर परिसर में होते विवाह, सामूहिक भोज आदि के आयोजन आदि भी अनेक आशातनाओं के कारण बनते हैं। अतः श्रावक वर्ग को अवश्य सावधान रहना चाहिए। सावधानी रखने योग्य मुख्य स्थान जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विवेक और सावधानी आवश्यक होती है। Office में छोटी सी असावधानी या लापरवाही से आपकी नौकरी जा सकती है। कर्मचारी वर्ग के आगे अधिकारों का अतिप्रयोग उन्हें आपका विरोधी बना सकता है या हड़ताल (Strike) की परिस्थिति भी उत्पन्न कर सकता है। इसी प्रकार मंदिर सम्बन्धी क्रिया- अनुष्ठान करते हुए भी परमात्मा के साथ-साथ आराधक एवं कर्मचारी वर्ग से भी व्यवहार करते हुए विवेक रखना अत्यावश्यक है। अन्यथा धर्म आराधना के यह स्थान व्यावहारिक हानि के साथ आध्यात्मिक पतन के भी विशिष्ट कारण बन सकते हैं। साधर्मिक वर्ग से व्यवहार नगर का मुख्य मन्दिर या संघ मंदिर सम्पूर्ण संघ के आराधना का स्थल होता है। सामूहिक स्थानों पर सामुदायिक नियमों का पालन जरूरी है । मन्दिर में सैकड़ों लोग दर्शन-पूजन करने आते हैं। यदि व्यवहार का उचित ध्यान न रखें
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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