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________________ 184... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... पंचाशक प्रकरण में यह भी कहा गया है कि जिनेन्द्रदेव के सद्भूत गुणों का संकीर्तन करने हेतु गंभीर पद और अर्थ से युक्त सारभूत स्तुति-स्तवन आदि का प्रयोग करना चाहिए। शुभ भावों से युक्त होने के कारण वे कर्मरूपी रोग को उपशांत करने में सक्षम हैं।24 ऐसे स्तवन अध्यवसायों की विशुद्धि करते हैं तथा आत्मा में संवेग एवं वैराग्य रस को उत्पन्न करते हैं इससे स्वकृत दुष्कृत्यों एवं पापकार्यों का निवेदन तथा पश्चात्ताप होता है। गीतार्थ आचार्यों के अनुसार परमात्मा के सामने हर कोई स्तवन नहीं गाना चाहिए। स्तवन गाते समय निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए 1. स्तवन कम से कम सौ वर्ष पुराना होना चाहिए। 2. रचयिता द्वारा निर्मित मूल राग में ही गाना चाहिए। 3. भक्ति भाववाहक एवं भावोल्लास वर्धक होना चाहिए। 4. आधुनिक फिल्मी धुन आदि पर बने हुए भड़कीले भजन नहीं गाने ___ चाहिए। 5. मधुर कंठ से गुणगान करना चाहिए। 6. उपदेशात्मक या कथानक युक्त स्तवन नहीं गाना चाहिए। 7. स्तवन रागबद्ध एवं लयबद्ध होना चाहिए। 8. जिस आचार्य की रचना गा रहे हों उनके प्रति हमारे हृदय में अहोभाव होने चाहिए क्योंकि रचयिता के प्रति सद्भाव होने से उनकी प्रत्येक कृति के प्रति भी हमारे सद्भाव रहते हैं। ___ इस प्रकार की अनेक मर्यादाओं से युक्त स्तवन परमात्मा के आगे गाना चाहिए। सौ वर्ष प्राचीन स्तवन की महत्ता क्यों? प्रश्न हो सकता है कि परमात्मा के समक्ष सौ वर्ष प्राचीन स्तवन ही क्यों गाना चाहिए? इसके पीछे कई रहस्यपूर्ण तथ्य छुपे हुए हैं। सामान्यतया प्रत्येक जीवित व्यक्ति के प्रति सभी की समान सद्भावनाएँ नहीं होतीं। वहीं व्यक्ति के देह विलय के बाद उसके दुर्गुणों एवं अपराधों के प्रति उदासीन भाव बन जाता है। सौ वर्षों
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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