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________________ भावे भावना भाविए ...183 एकाग्रचित्त होने पर एक समय में व्यक्ति का उपयोग एक ही विषय में होता है, किन्तु उसके अतिरिक्त अन्य विषयों के परमाणु भी वहाँ मौजूद होते हैं। यह बात अलग है कि वे वहाँ दिखलाई नहीं देते या उनका आभास नहीं होता। परमात्मा की स्तुति एवं स्तवन क्यों? जिनपूजा का मुख्य हेतु जिनेश्वर परमात्मा के प्रति बहुमान व्यक्त करना है। स्तुति-स्तवन के माध्यम से परमात्मा का गुणगान करते हुए उनके प्रति पूज्य भाव अभिव्यक्त किया जाता है। अरिहंत परमात्मा का गुणगान करने से पूजक के मन में गुणानुरागी वृत्ति का अभिवर्धन होता है। इसी के साथ परमात्म गुणों का अवतरण एवं उनका सिंचन जीव में सहज रूप से होने लगता है। __परमात्मा के प्रति श्रद्धा एवं समर्पण को व्यक्त करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम जिन स्तवना ही है। शास्त्रों में इसी को प्रीति अनुष्ठान के नाम से अभिव्यक्त किया गया है। आचार्य हरिभद्रसूरि ने जिनपूजा, प्रभु-सत्कार आदि को विरति धर्म का प्रारंभ माना है। जिनेश्वर परमात्मा के गुणगान से मन में जो भावोल्लास पैदा होता है. इससे चित्त की निर्मलता एवं स्थिरता में विकास होता है। श्रद्धा रूपी डोरी के द्वारा परमात्मा से अटूट सम्बन्ध बंध जाता है। यह भक्ति सम्बन्ध भक्त को भगवान बनाता है। परमात्म भक्ति मोक्ष का प्रथम सोपान है, क्योंकि प्रभु आकर्षण से प्रभु प्रीति, प्रीति से श्रद्धा, श्रद्धा से विरति, विरति से गुणश्रेणी और गुणश्रेणी से मोक्ष की प्राप्ति होती है। जैनाचार्यों ने कई भावयुक्त पद्यों की रचनाएँ की है, जिनके द्वारा परमात्मा के सामने अपने अंतरभावों को अभिव्यक्त किया जा सकता है। स्तवन के द्वारा परमात्मा के प्रति अपनत्व भाव की प्रतीति होती है तथा मनोभावों को प्रकट करने का भी यह सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। अत: जिनपूजन-दर्शन आदि करते हुए भावोल्लास में वृद्धि करने एवं शुभ भावों में स्थिरता आदि लाने हेतु भाव भरे स्तवनों द्वारा परमात्म स्तवना करनी चाहिए। स्तवन के शास्त्रोक्त लक्षण आचार्य हरिभद्रसूरि ने परमात्मा के समक्ष मेघ के समान गंभीर, मधुर स्वर युक्त उत्तम अर्थ वाले, वैराग्यजनक तथा आचार्यों द्वारा रचित स्तवन के द्वारा परमात्म भक्ति करने का निर्देश दिया है।23
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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