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________________ 178... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... सूत्र है। गमनागमन, दर्शन-पूजन आदि की क्रिया करते हुए जीव हिंसा के द्वारा हमारी आत्मा मलिन हुई हो तो उसका प्रायश्चित्त तस्स उत्तरी सूत्र के द्वारा ही किया जाता है। अन्नत्थ सूत्र के द्वारा प्रायश्चित्त रूप में किए जा रहे कायोत्सर्ग की मर्यादाएँ एवं रूपरेखा तय की जाती है। कायोत्सर्ग के बाद उच्चारित किया जाने वाला लोगस्स सूत्र मार्ग प्रणेता चौबीस तीर्थंकरों के उपकारों का स्मरण करते हुए उनके प्रति कृतज्ञ भाव अभिव्यक्त करने का सूत्र है। शास्त्रकारों के अनुसार कोई भी ऐसी क्रिया जिससे स्वरूप हिंसा भी न हो रही हो तो भी उससे पूर्व इरियावहियं करनी चाहिए। भावपूजा या चैत्यवंदन विधि भी एक ऐसा ही विधान है। भावपूजा से पूर्व इरियावहियं करने का एक कारण यह भी है कि भावपूजा से पूर्व द्रव्यपूजा करते हुए, जिनालय आते समय गमनागमन की क्रिया करते हुए अथवा मन्दिर सम्बन्धी कोई कार्य करते हुए किसी भी प्रकार की हिंसा हुई हो तो उसका प्रायश्चित्त भी इसी सूत्र के द्वारा किया जाता है। शंका- प्रश्न हो सकता है कि जब प्रत्येक क्रिया करने से पूर्व इरियावहियं करनी चाहिए तो फिर द्रव्यपूजा रूप अष्टप्रकारी पूजा से पहले इरियावहियं क्यों नहीं करते? समाधान- द्रव्य पूजा सावध व्यापार युक्त है अर्थात इसमें जीवहिंसा तो निश्चित है। परंतु यह हिंसा मात्र स्वरूप हिंसा होती है अनुबंध हिंसा नहीं। इसी कारण इसे हिंसा की श्रेणी में नहीं गिना जाता। इरियावहियं का विधान जैनाचार्यों ने उस क्रिया से पूर्व किया है जिसमें स्वरूप हिंसा भी न हो। अंग पूजा आदि से युक्त अष्टप्रकारी पूजा करने से पूर्व इसी कारण इरियावहियं करने का विधान नहीं है। भावों की प्रशस्तता एवं उर्ध्वता के कारण भी इस क्रिया में इरियावहियं करने का निर्देश न हो ऐसा हो सकता है। चैत्यवंदन विधि की पारमार्थिक उपादेयता ___पंचाशक प्रकरण में चैत्यवंदन के फल की विवक्षा करते हुए कहा गया है कि भावपूर्वक शुद्ध चैत्यवंदन करने से संसार परिभ्रमण अर्ध पुद्गल परावर्तन से भी कम रह जाता है। यद्यपि यह जीव अनंत बार चैत्यवंदन कर चुका है परंतु अनंत बार किया गया चैत्यवंदन अशुद्ध होने से मोक्ष साधना में हेतुभूत नहीं बना।17
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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