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________________ अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ... 135 अक्षत पूजा हेतु उत्तम Quality के अखंड एवं सफेद चावलों का प्रयोग करना चाहिए। हो सके तो बासमती चावल और यदि किसी के लिए संभव न हो तो कम से कम जो चावल घर में खाने हेतु प्रयोग किए जाते हैं उनका प्रयोग अक्षत पूजा हेतु करना चाहिए । कई लोग राशन के चावल या टुकड़ी चाँवलों का मन्दिर में प्रयोग करते हैं, यह परमात्मा का असम्मान है। जो चावल हल्की Quality का मानकर अपने या परिवार वालों के खाने के लिए उपयोग नहीं करते वे परमात्मा को कैसे चढ़ा सकते हैं? चढ़ाने योग्य चावलों को जयणा पूर्वक देखकर फिर चढ़ाना चाहिए। उसमें इली-लट आदि जीव न हो इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि द्रव्य जैसा होता है वैसे ही भाव बनते हैं। मन्दिर में चढ़ाए गए चावल निर्माल्य द्रव्य रूप माने जाते हैं। उन चावलों को सस्ते दाम में या उचित दाम में भी नहीं खरीदना चाहिए । मन्दिर के लिए तो उनके प्रयोग का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। प्रत्येक श्रावक को अक्षत साथ लेकर मन्दिर जाना चाहिए क्योंकि आचार्यों का कहना है कि जो लोग अष्टप्रकारी पूजा नहीं कर सकते उन्हें कम से कम अक्षत पूजा तो अवश्य रूप से करनी चाहिए। परमात्मा की धूप-दीप आदि से पूजा करने के बाद चैत्यवंदन से पूर्व सभामंडप में अक्षतपूजा करनी चाहिए । प्रात:काल में प्रक्षाल आदि क्रिया करने वाले कुछ लोगों के द्वारा विधि के क्रम में फेरबदल कर दिया जाता है। अपनी सुविधा के लिए वे लोग विलेपन पूजा में विलम्ब हो तो अक्षत पूजा आदि पहले कर लेते हैं। यह जिनाज्ञा की प्रत्यक्ष आशातना है। परिस्थिति विशेष में विधि का अक्रम करना अपवाद रूप में स्वीकार्य हो सकता है । परन्तु बार-बार किया गया अक्रम कभी भी कार्य की सिद्धि में सहायक नहीं बन सकता। जिस कार्य के लिए जो क्रम निर्धारित किया गया हो उसे उसी क्रम में करने पर उचित फल मिलता है। क्रम में किया गया रूपांतरण कई बार विपरीत फल भी देता है। उदाहरणतया स्कूल में पढ़ने का एक क्रम होता है और उसी
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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