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________________ अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...131 को दूर करने के लिए अग्नि का ही प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार दीपक पूजा भी जीव की वैभाविक अशुद्धियों को दूर कर शुद्ध आत्म स्वरूप को प्रकट करती है। परमात्मा के समक्ष दीपक प्रकट करने का एक अन्य हेतु यह है कि जिस प्रकार दीपक अंधकार का नाश करता है वैसे ही जिनेश्वर परमात्मा का ज्ञान रूपी प्रकाश हमारे जीवन के दुःख एवं अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करें। दीपक का सात्त्विक प्रकाश जिनालय के वातावरण को मनोरम बनाता है। तथा पूजार्थी के मन का सुप्त ज्ञान एवं विवेक जागृत करता है । शंका- दीपक के स्थान पर मन्दिरों में आधुनिक लाइटों का प्रयोग उचित है या नहीं? अंधकार तो उनसे भी दूर हो सकता है ? समाधान- जैन शास्त्रों में मन्दिरों के लिए घृत के दीपक करने का ही विधान मिलता है। उन्हें शुद्ध, पवित्र एवं सात्त्विक प्रकाश युक्त माना है। दूसरा दीपक करने का प्रयोजन मात्र प्रकाश करना ही नहीं है । मन्दिर में आने वाले श्रावकों के मन में विशुद्ध भावों को जागृत करना एवं मन्दिर के वातावरण को सुरम्य बनाना भी इसका मुख्य हेतु है । वर्तमान में उपलब्ध Electric Lamp और Halogen Lights आदि का मन्दिरों में प्रयोग करना उचित नहीं है । विद्युत निर्माण एक हिंसक प्रवृत्ति है अत: उसके द्वारा उत्पन्न रोशनी वातावरण में शुद्धता एवं पवित्रता को उत्पन्न नहीं कर सकती। विद्युत निर्माण में मात्र स्थावरकाय की ही नहीं सकाय जीवों की भी हिंसा होती है। विद्युत संसाधनों से निसृत आक्रामक रोशनी के कारण मूर्तियों के प्रभाव में भी कमी आती है तथा बिजली के कारण सदा भय भी बना रहता है। वर्तमान में कई अप्रिय घटनाएँ Short Circuit आदि के कारण देखी जाती है। दीपक के प्रकाश में परमात्मा की जो सौम्य मुखमुद्रा नजर आती है एवं वातावरण में आह्लादकता अनुभूत होती है वह कृत्रिम विद्युत लाइटों में नहीं होती। वैज्ञानिक शोधकर्ताओं के अनुसार अत्यंत खतरनाक अणुबम के विनाशक असर को भी घृत दीपक नहींवत कर देता है। मंदिर में दीपक की रोशनी ही सर्वोत्कृष्ट है अत: दीपक भी उतना ही उत्तम होना चाहिए। प्राचीन ग्रन्थकारों के
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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