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________________ 130... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... है, अतः हमारी आत्मा के भीतर रही परमात्म सत्ता को प्रकट करने के लिए हम विविध प्रकार से परमात्मा की पूजा करते हैं । धूप पूजा के माध्यम से अनंत काल की सांसारिक वृत्तियों से मलिन हुई आत्मा को स्वगुणों में स्थिर करने का प्रयास किया जाता है। इसी के साथ आत्मा के ऊर्ध्वगामी स्वरूप एवं मोक्ष लक्ष्य का भी स्मरण करवाया जाता है। शुद्ध एवं निर्मल वातावरण में आत्मभाव भी सहजतया निर्मल बनते हैं। धूपपूजा का प्रेरणास्पद स्वरूप एवं उसके लाभ है। पूजा विधि के दौरान धूप के प्रयोग से विशिष्ट खुशबू का उत्सर्जन होता धूप स्वयं जलकर सम्पूर्ण वातावरण को पवित्र, स्वस्थ एवं शान्तिपूर्ण बनाता है तथा मानव मन के अहंकार को जलाकर प्यार और करुणा के इत्र को प्रसरित करने की प्रेरणा देता है। धूप आत्मा के ऊर्ध्वगामी स्वरूप का श्रेष्ठ प्रतीक है। धूप पूजा करने से आत्मा के निरुपाधिक गुण प्रकट होते हैं। अनंत काल से आत्मा को मलिन कर रहे अष्टकर्म भस्मीभूत होते हैं एवं आत्म प्रदेश आत्मगुणों से सुवासित हो जाते हैं। धूप की सुरम्य परिमल से जिस प्रकार वातावरण पवित्र, निर्मल एवं मनोनुकूल बन जाता है, वैसे ही धूप पूजा करने से जीव सम्यग्दर्शन की खुशबू से महक उठता है। धूप के उर्ध्वगामी स्वरूप के अनुसार पूजक के भक्ति भाव की भी वृद्धि होती है। जीव अपने आत्मस्वभाव में रमण करने लगता है, जैसे धुआं कीटाणुओं को दूर कर वायुमण्डल को शुद्ध एवं पवित्र बनाता है वैसे ही धूप पूजा भोग एवं रोग रूपी कीटाणुओं को दूर कर मन को पवित्र बनाती है। दीपक पूजा का तात्त्विक स्वरूप मन्दिर परिसर में व्याप्त बाह्य अंधकार एवं आत्मा में व्याप्त आंतरिक अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने के लिए परमात्मा के समक्ष शुद्ध घी के दीपक प्रकट करना दीपक पूजा है। अष्टप्रकारी पूजा में इसका पाँचवाँ स्थान एवं अग्रपूजा में दूसरा स्थान है। पूजन - महापूजन आदि में दीपक पूजा या अखंड दीपक का विशेष महात्म्य देखा जाता है। दीपक में प्रज्वलित ज्योति अग्नि का ही एक स्वरूप है। अग्नि को शुद्ध एवं शुद्धिकरण का विशेष साधन माना गया है। स्वर्ण आदि पदार्थों की अशुद्धि
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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