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________________ 122... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... शंखेश्वर, पालीताना आदि तीर्थों में लोग सुबह से शाम तक परमात्मा की चंदन पूजा करने हेतु Line में खड़े रहकर अनंत कर्मों की निर्जरा करते हैं। पूर्वकाल में जिनपूजा हेतु प्रयुक्त इत्र, चंदन आदि पदार्थों की सुगंध से कई-कई दिनों तक आस-पास का प्रदेश सुरभि युक्त रहता था। जन्म कल्याणक, दीक्षा कल्याणक एवं निर्वाण कल्याणक के समय इन्द्रों द्वारा परमात्मा की विलेपन पूजा की जाती है। प्रतिष्ठा आदि प्रसंगों में आचार्य भगवंत आदि के नौ अंगों की पूजा करने की परम्परा है। वर्तमान में अंगपूजा के अंतर्गत सर्वाधिक चंदन पूजा ही की जाती है तथा चंदन पूजा को अष्टप्रकारी पूजा में विशेष स्थान प्राप्त है। चंदनपूजा का संदेशात्मक रूप चंदन विशेष रूप से सुगंध एवं शीतलता के लिए प्रसिद्ध है। इसके द्वारा आत्मस्वभाव को शीतल बनाने की प्रेरणा मिलती है। जिस प्रकार चंदन को काटने वाली कुल्हाड़ी भी चंदन की खुशबू से महक उठती है। उसी प्रकार हमारे विरोधी तत्त्व भी हमारे गुणों से लाभान्वित हों ऐसी प्रेरणा चंदन पूजा के द्वारा प्राप्त होती है। केशर को परमात्म शक्ति,त्याग एवं बलिदान का प्रतीक माना गया है। पुष्प पूजा का शास्त्रोक्त स्वरूप एवं प्रयोजन अष्टप्रकारी पूजा में तृतीय स्थान पर पुष्प पूजा का उल्लेख है। यह अन्तिम अंग पूजा है। शुद्ध, सुन्दर, सुगन्धित एवं अखंड पुष्पों को जयणापूर्वक परमात्मा के चरणों में चढ़ाना पुष्पपूजा कहलाता है। पंचोपचारी एवं अष्टोपचारी पूजा में पुष्प पूजा का समावेश होता था। अत: पुष्प पूजा पूर्वकाल से नित्यपूजा के रूप में मान्य रही है।। वीतराग प्रतिमा को पुष्पों से सुशोभित करने पर सौंदर्य में वृद्धि होती है, जिसके दर्शन से उत्पन्न भाव उर्मियां कर्म निर्जरा के साथ पुण्यबंध में हेतुभूत बनती है। पृष्प को प्रेम, कामवासना और भोग का प्रतीक माना गया है। साहित्यमनीषी कामदेव के बाण के रूप में इसकी प्रशंसा करते हैं। वीतराग परमात्मा राग-द्वेष एवं कामवासना आदि भोग वृत्तियों से ऊपर उठकर चरम सिद्ध पद को प्राप्त कर चुके हैं। पुष्पों को समर्पित करते हुए परमात्मा से वासना मुक्ति की प्रार्थना की जाती है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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