SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...117 नव अंग की ही पूजा करनी चाहिए। इन नौ अंगों से कई विशिष्ट रहस्य भी जुड़े हुए हैं और उन-उन अंगों की पूजा करने पर वे उत्पन्न भी होते हैं। नव अंग पूजा के मौलिक तथ्य __अंग पूजा में 1. चरण 2. जानु 3. कलाई 4. कंधा, 5. शिखा 6. ललाट 7. कंठ 8. हृदय और 9. नाभि- इन नौ अंगों का समावेश होता है। सर्वप्रथम परमात्मा के चरणों की पूजा की जाती है जिसकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं चरण- चरण युगल सेवा, साधुता एवं साधना के प्रतीक माने जाते हैं। किसी की सेवा करनी हो तो चरणों की सेवा ही विशेषरूप से की जाती है। यद्यपि नाभि से नीचे के अंगों को निम्न कोटि का माना जाता है परन्तु चरणों को इनमें भी पूज्य स्थान प्राप्त है। शरीर के उत्तमांग मस्तक को चरणों में ही झुकाया जाता है। परमात्मा ने विभिन्न क्षेत्रों में विहार, धर्म का प्रचार-प्रसार आदि इन्हीं चरणों के द्वारा किया। इन पावन चरणों के आधार पर ही साढ़े बारह वर्ष तक परमात्मा ने कठोर साधना की, कायोत्सर्ग एवं प्रतिमाएँ धारण की तथा अपने आप को पूज्य पद पर अग्रसर किया। ___ चरण में अंगूठे को विशेष तीर्थरक्षक माना गया है। शरीर में धातुराज के रूप में रहे वीर्य को संतुलित करने हेतु चरण मुख्य केन्द्र है। अंगूठे पर ध्यान केन्द्रित करने से एकाग्रता-प्रसन्नता एवं आत्मिक आनंद में अभिवृद्धि होती है। गुरुजनों के भी चरण स्पर्श ही किए जाते हैं क्योंकि उनकी साधना की शक्ति चरणों में ही समाहित होकर रहती है। ___परमात्मा ने इसी अंगूठे के द्वारा जन्म कल्याणक के समय मेरु पर्वत को कंपायमान किया था। ऐसे प्रभावशाली परमात्मा के पद युगल की पूजा अहोभावपूर्वक करनी चाहिए। जिस प्रकार परमात्मा ने अपने चरणों को भोगमार्ग से योगमार्ग की ओर अग्रसर किया वैसे ही योग मार्ग की प्राप्ति के लिए चरण पूजा श्रेयस्कर है। जानु (घुटना)- नव अंगों में अंगठे की पूजा करने के बाद घटनों की पूजा करनी चाहिए। घुटना स्वाधीनता का प्रतीक है। जो व्यक्ति स्वाधीन या स्वतंत्र हो वही सेवा-साधना आदि कार्य स्वेच्छापूर्वक कर सकता है। हम व्यवहार जगत में भी देखते हैं कि जब बच्चा घुटनों के बल पर चलना सीख
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy