SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...95 प्रकार चंदन के अंग-अंग में शीतलता रमी हुई है उसी तरह मेरी आत्मा में भी समता रूपी शीतलता प्रकट हो, ऐसी भावना करते हुए निम्न श्लोक एवं दोहा बोलें सकल मोह तमिस्र विनाशनं, परम शीतल भाव युतं जिनम् । विनय कुंकुम दर्शन चन्दनैः सहज तत्त्व विकास-कृताऽर्चये ।। अर्थ- जिसने मोह रूपी अंधकार का विनाश कर दिया है तथा जो परम शान्ति एवं शीतलता गुण से युक्त है, उन वीतराग प्रभु की विनय रूपी कुंकुम (केसर) एवं सम्यग्दर्शन रूपी चंदन से स्वाभाविक आत्मोकर्ष की प्राप्ति हेतु चंदनपूजा करता हूँ। दोहा- शीतल गुण जेहमा रह्यो, शीतल प्रभु मुख रंग। . आत्म शीतल करवा भणी, पूजो अरिहा अंग ।। अर्थ- जिनके भीतर चंदन की भांति शीतलता का गण रमा हआ है तथा मोह आदि कषायों का नाश कर जिन्होंने अपनी आत्मा में शीतलता प्रसरित कर दी है, ऐसी आत्मिक शीतलता को प्राप्त करने हेतु अरिहंत परमात्मा के अंग की पूजा करता हूँ। मन्त्र- ॐ ह्रीं श्रीं परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय चन्दनं यजामहे स्वाहा। तत्पश्चात चिंतन पूर्वक निम्न दोहें बोलते हुए प्रभु के नव अंगों की पूजा करें। पूजा करते हुए प्रथम दाएँ अंग पर फिर बाएँ अंग पर तिलक करें। नव अंग पूजा के दोहेंचरण- जल भरी संपुट पत्रमां, युगलिक नर पूजंत । ऋषभ चरण अंगूठडे, दायक भवजल अंत ।। अर्थ- यगलिकों ने पत्र (पत्ते) संपट में जल भरकर ऋषभदेव के चरण युगल की पूजा की थी। ऐसे परमात्मा के चरणों की पूजा भव समुद्र का अंत करने वाली है। इन भावों के साथ पहले दाएँ और फिर बाएँ अंगूठे की पूजा करें। जानु (घुटना) जानु बले काउसग्ग रह्या, विचर्या देश-विदेश । खड़ा-खड़ा केवल लह्या, पूजो जानु नरेश ।। अर्थ- जिन घुटनों के बल खड़े रहकर परमात्मा ने कायोत्सर्ग में अडिगता
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy