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________________ जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...89 जिनालय के माध्यम से व्यवहारत: जिनप्रतिमा का वंदन-पूजन किया जाता है परन्तु निश्चय से तो आत्मा के शुद्ध स्वरूप को प्रकट करने का ही प्रयास किया जाता है। इस अध्याय में जिनपूजन की क्रमिक विधि एवं जिन पूजन-दर्शन की सम्यक आराधना में सहायक सात प्रकार की शुद्धि, पाँच अभिगम एवं दसत्रिक का विवेचन इस प्रकार किया गया है कि जिससे प्रत्येक उपासक सरल एवं सुगम मार्ग को जानकर उसे आचरण में ला सकेगा। संदर्भ-सूची 1. (क) मंगलं जिनशासनम्, पृ-8 (ख) पूजा प्रकरण, गा. 1, 8,9, 10,11 2. (क) धर्मसंग्रह स्वोपज्ञवृत्ति, गा. 60-61 की टीका, पृ. 9-25 (ख) मध्याह्ने कुसुमैः पूजा, पूजा प्रकरण, गा. 10 3. (क) मंगल जिनशासनम्, पृ.-9 (ख) संध्यायां धूपदीपयुक, पूजा प्रकरण, गा. 10 4. (क) जैन धर्म और जिन प्रतिमा पूजन रहस्य, पृ. 207 (ख) श्राद्धविधिप्रकरण, पृ. 119 5. चैत्यवंदन, भाष्य गा. 20 6. चैत्यवंदन भाष्य, गा. 21 7. चैत्यवंदन भाष्य, गा. 6-7 चैत्यवंदन कुलक, गा. 1-8, पृ. 97 8. (क) चैत्यवंदन भाष्य, गा.-8 (ख) चैत्यवंदन कुलक, गा.-4, पृ. 97 9. चैत्यवंदन कुलक, गा. 4, पृ. 97 10. (क) चैत्यवंदन भाष्य, गा. 8 (ख) चैत्यवंदन कुलक, गा. 5, पृ. 97 11. (क) चैत्यवंदन भाष्य, गा. 10 (ख) चैत्यवंदन कुलक, गा. 5, पृ. 97 12. (क) चैत्यवंदन भाष्य, गा. 11, 12 (ख) चैत्यवंदन कुलक, गा. 6, पृ. 97 13. (क) चैत्यवंदन भाष्य, गा. 13
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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