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________________ 72... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... अभिषेक (प्रक्षाल) जल तैयार करने की विधि · पूर्व काल में लगभग पंचामृत से प्रक्षाल करने का ही विधान था वहीं आज अधिकांश स्थानों पर दूध एवं पानी से प्रक्षाल करने तक सीमित रह गया है। • प्रक्षाल हेतु कुआं, बावरी, बारिश आदि का पानी ही उपयोग में लेना चाहिए। वर्तमान में प्रयुक्त हो रहा नलों का पानी शास्त्रानुसार योग्य नहीं है। पंचामृत तैयार करने हेतु 50% गाय का दूध, 25% निर्मल जल, 10% दही, 10% शक्कर और 5% गाय का घी इनका मिश्रण करना चाहिए। · • पंचामृत तैयार करते समय मुखकोश बांधकर रखना चाहिए। आपस में बातें नहीं करनी चाहिए। थूक, पसीना आदि पंचामृत में न गिरे इसका पूर्ण विवेक रखना चाहिए। सिर्फ • दूध प्रक्षाल करना हो तो दूध में नाम मात्र पानी मिलाना चाहिए। पंचामृत या गन्ना रस आदि से प्रक्षाल करने के बाद चिकनाहट पूर्ण रूप से साफ हो जाए इसका पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। • पैर धोने से पूर्व पैर धोने के स्थान का जयणापूर्वक निरीक्षण करना चाहिए ताकि जीव हिंसा न हो और पानी छाना हुआ हो । • नल के नीचे पैर नहीं धोने चाहिए । • पैरों के पंजों को एक-दूसरे से रगड़कर नहीं धोना चाहिए इससे संसार में अपयश मिलता है। • गीले पैरों से एक-दूसरे स्थान पर चलकर नहीं जाना चाहिए। • जहाँ पैर धो रहे हो वह पानी नाली में नहीं जाए और 48 मिनट की अवधि में सूख जाए इसका विवेक रखना चाहिए। मन्दिर में प्रवेश करने की विधि अष्टकारी पूजा की सम्पूर्ण सामग्री लेकर श्रावक वर्ग को मंदिर की दायीं तरफ से तथा श्राविका वर्ग को बायीं तरफ से प्रवेश करना चाहिए। मंदिर द्वार की पहली सीढ़ी पर दोनों को सर्वप्रथम दायाँ पैर ही रखना चाहिए, ऐसा निर्देश श्राद्धविधि प्रकरण में किया गया है। • परमात्मा के दर्शन होते ही मस्तक झुकाकर 'नमोजिणाणं' कहना चाहिए।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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