SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ... 43 प्रश्न हो सकता है कि आजकल साधु-साध्वी तो यह कहते हैं कि परमात्मा का दर्शन-पूजन किए बिना मुँह में पानी भी नहीं डालना चाहिए, तो फिर शास्त्रकारों मुखशुद्धि करने का वर्णन क्यों किया ? आजकल अनेक श्रावक तो परमात्मा की पूजा करके ही मुँह में पानी डालते हैं। वस्तुतः यहाँ मुखशुद्धि का विधान त्रिकाल पूजा के अन्तर्गत मध्याह्नकालीन पूजा की अपेक्षा किया गया है। पूर्वकाल में अष्टप्रकारी पूजा मध्याह्न वेला में सम्पन्न की जाती थी तब तक गृहस्थ की नवकारसी आदि हो जाती थी। आजकल त्रिकालपूजा का विधान नहीवत रह गया है। इस कारण प्रातः काल में पूजा करने वालों के लिए मुखशुद्धि का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता । परन्तु जो लोग नाश्ता करके पूजा करने जाते है उन्हें पूजा से पूर्व मुखशुद्धि अवश्य करनी चाहिए। मुखशुद्धि हेतु टूथपेस्ट आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए । शुद्ध अहिंसक अनेक वस्तुएँ मार्केट में उपलब्ध हैं उनका प्रयोग मुखशुद्धि हेतु हो सकता है। 2. वस्त्र शुद्धि - प्रत्येक कार्य में वस्त्रों का अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। School, College, Office सभी का अपना-अपना Uniform होता है। इसी प्रकार Homeguard, Military, Doctor, Police, Advocate सभी का एक विशिष्ट Dresscode होता है। उस Dresscode के कारण कोई भी उन्हें दूर से ही पहचान सकता है। इसी प्रकार जैन आचार ग्रन्थों में श्रावक-श्राविकाओं के लिए एक निश्चित Dress है और उसी को पहनकर श्रावकों को पूजा करनी चाहिए। आजकल पूजा हेतु प्रयुक्त कुर्ता-पायजामा, सीली हुई धोती आदि पहनने योग्य नहीं है। पूजा के लिए अंट-शंट या मन मुताबिक Dress पहनने से सामान्य व्यक्ति एवं पूजार्थी में कोई अंतर ही नजर नहीं आता। दूसरी बात एक Fix Dress होने से मन में जो भावधारा बनती है वह भिन्न-भिन्न Dress पहनने पर नहीं बनती। अतः वस्त्र परिधान करते हुए निम्न बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए - · अंगशुद्धि के बाद वस्त्र पहनने से पूर्व शरीर को तौलिए (Tower) से पोंछकर सुखा देना चाहिए। तदनन्तर गिला तौलिया बदलकर फिर पूजा के वस्त्र पहनने चाहिए। :. • पूजा के वस्त्र उत्तर दिशा की ओर मुख करके पहनने चाहिए। • पूजा में पहनने योग्य वस्त्र, शुद्ध, अखंड, पवित्र एवं धुले हुए होने
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy