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________________ जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...37 • स्नान हेतु Bath tub, shower, Swimming pool, Geyser, Shampoo आदि का प्रयोग यथासंभव नहीं करें। • फिर योग्य दिशा की ओर मुख करके एवं उचित स्थान पर खड़े होकर शुद्ध, अखंड एवं उत्तम मूल्यवाले पूजा के वस्त्रों का परिधान करें। यथासंभव दूसरों के पहने हुए वस्त्र या मंदिर में रखे हुए वस्त्र नहीं पहनें। • फिर मन को सुंदर भावों से भावित कर जिनेश्वर परमात्मा के गुणों का चिंतन करें। • उसके बात न्याय-नीति से प्राप्त अष्टप्रकारी पूजा की सामग्री को अहोभाव पूर्वक हाथ में लेकर परमात्मा के दरबार में जाएं। मार्ग में ईर्यासमिति का पालन करें एवं किसी से बातचीत न करें। • जिनालय की ध्वजा, शिखर आदि का दर्शन होते ही मस्तक झुकाकर एवं दोनों हाथ जोड़ कर “नमो जिणाणं' कहें। • फिर जहाँ पर भी पैर धोने की व्यवस्था हो वहाँ पर जयणापूर्वक पैर धोकर और पोंछकर जिनमन्दिर में प्रवेश करें। • जिनमन्दिर के मुख्यद्वार में प्रवेश करते समय मन्दिर की दहलिज का हाथ से स्पर्श कर उसे ललाट पर लगाते हुए प्रथम निसीहि कहकर समस्त सांसारिक गतिविधियों का त्याग करें। • फिर मलनायक परमात्मा के दर्शन होने पर “नमोजिणाणं' कहकर अंजलिबद्ध प्रणाम करें। • तदनन्तर दाहिनी तरफ से परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा दें। प्रदक्षिणा देते समय मन्दिर का सम्यक निरीक्षण करें। • प्रदक्षिणा देते हुए मन्दिर में कहीं जाला, कचरा आदि दिख जाए तो पहले उसे साफ करें। उसके बाद मन्दिर सम्बन्धी अन्य कोई कार्य हो तो उसे पूर्ण करें। इसी के साथ पेढ़ी आदि की व्यवस्था देखकर आवश्यकता हो तो उसे सुव्यवस्थित करें। फिर पूजा की तैयारी करें। • चन्दन आदि घिसने हेतु मुख पर आठ पट्ट का मुखकोश बांधे। यहाँ महिलाएँ अलग से रूमाल रखें तथा पुरुष वर्ग खैस (दुपट्टा) से ही मुखकोश बनाएँ। • यदि प्रक्षाल करना हो तो शुद्ध बरतन में कुए आदि का शुद्ध छना हुआ
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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