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________________ 176...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण • असावधानी से वस्त्र धोने पर तीन उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • शरीर की विभूषा, पावों की मालिश एवं शरीर का प्रक्षालन करने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है। . अशुद्ध खाद्य वस्तु को पात्र सहित परिष्ठापित करने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • मार्ग में आई नदी का उल्लंघन करने पर दो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • नवकारसी आदि प्रत्याख्यान न करने पर, उपयोगविधि न करने पर, अप्रमार्जित वसति में स्वाध्याय करने पर, विकथा करने पर, दिन में शयन करने पर, पर-परिवाद करने पर, कुतूहल से नाटक आदि देखने पर, स्वमति से कुशास्त्र का श्रवण, व्याख्यान एवं पठन आदि करने पर तीन उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • गुर्वाज्ञा बिना एकाकी विचरण करने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • पात्र-उपकरण आदि टूटने पर एक उपवास का प्रायश्चित्त आता है। . क्रोधादि में उपधि को फाड़ देने अथवा टुकड़ा आदि करने पर एक उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • आवश्यक कारण में गुर्वाज्ञा होने के उपरान्त भी आधाकर्मी आहार ग्रहण न करने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है। . इन्द्रिय लोलुपता से संयोजना का दोष लगने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • अनुपयुक्त काल में उपधि का प्रक्षालन करने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • हँसी-मश्करी करने पर दो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • यथाशक्ति साधर्मिक बन्धुओं का सहयोग अथवा तद्योग्य प्रवृत्ति न करने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है। वसति सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त इयाणिं वसहिदोसपयच्छित्तं। कालाइक्कंताए पणगं। उवट्टाणा अभिक्कन्ता अणभिक्कंतां वज्जासु चउलहु। महावज्जाइसु चउगुरु।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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