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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 175 अनुपयुक्त (रात्रि) वेला में मलोत्सर्ग करने पर दो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • स्थंडिल भूमि एवं उपधि की प्रतिलेखना न करने पर तीन उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • वसति ( रहने योग्य स्थान) की प्रमार्जना न करने पर, काजा का उद्धरण (परिष्ठापन) न करने पर तथा काजा को अविधि से परिष्ठापित करने पर तीन उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • जिनप्रतिमा, पुस्तक, गुरु आदि की आशातना करने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है। साधु-साधु अथवा साध्वी- साध्वी में परस्पर वाक् कलह होने पर पूर्वोक्त पाँचों का एकगुणा प्रायश्चित्त आता है। साधु-साधु या साध्वी- साध्वी की परस्पर लड़ाई होने पर पाँचों का दुगुणा प्रायश्चित्त आता है। • साधु अथवा साध्वी की परस्पर में मारपीट होने पर मूल प्रायश्चित्त आता है। • साधु-साधु के परस्पर में हुई लड़ाई यदि लोगों को ज्ञात हो जाये तो पाँचों ही भेद का पच्चीस गुणा प्रायश्चित्त आता है । • सागारिक (गृहस्थ) के देखते हुए आहार - निहार करने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • निन्दित कुलों से आहारादि ग्रहण करने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • सूतकगृह का भोजन तथा प्रथम गर्भ सम्बन्धी सूतक का भोजन ग्रहण करने पर दो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। गणभेद करने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है। निष्प्रयोजन गृहकार्य का चिन्तन करने पर दो उपवास का प्रायश्चित्त गुर्वाज्ञा के बिना स्वमति से प्रवृत्ति करने पर सम्यक्त्व का नाश · गुर्वाज्ञा के बिना असावधानी पूर्वक प्रवृत्ति करने पर तीन उपवास का प्रायश्चित्त आता है। आता है। • होता है।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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