SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 149 विज्जा मंते चुण्णे जोगे, चउसु वि लहेइ चउलहुयं । मूलं च मूलकम्मे, उप्पायणदोसपच्छित्तं । 130 ।। (विधिमार्गप्रपा, पृ. 83 ) ( जीतकल्प भाष्य, 1324-1468) 1. धात्री - पहला धात्री नामक उत्पादना दोष खीर आदि के भेद से पाँच प्रकार का कहा गया है। इन पाँचों प्रकारों में से किसी तरह का आहार ग्रहण करने पर चतुः लघु का प्रायश्चित्त आता है || 23 | 2. दूती - दूसरा दूतीपिण्ड नामक उत्पादना दोष स्वग्राम भिन्न और परग्राम भिन्न दो प्रकार का है। इन दोनों प्रकार के आहार ग्रहण करने पर चतुः लघु का प्रायश्चित्त आता है। 24। 3. निमित्त - तीसरा निमित्त दोष तीन काल के भेद से तीन प्रकार का है। इन तीनों भेदों में भूतकाल निमित्त सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर चतुः लघु तथा वर्तमानकाल एवं भविष्यकाल निमित्त सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर चतुः गुरु का प्रायश्चित्त आता है | |25|| 4. आजीवक - चौथा आजीवक नामक दोष जाति-कुल- शिष्य गण एवं कर्म के भेद से पाँच प्रकार का निर्दिष्ट है । इन पाँचों भेद सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर चतुः लघु का प्रायश्चित्त आता है ||26|| 5. वनीपक-पाँचवें वनीपक सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर मासलघु का प्रायश्चित्त आता है || 27 ॥ 6. चिकित्सा - छठवें चिकित्सा नामक पिण्डदोष के दो प्रकार हैं- 1. बादर और 2. सूक्ष्म। बादर चिकित्सा सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर चतुः लघु का प्रायश्चित्त आता है तथा सूक्ष्मचिकित्सा सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर मासलघु प्रायश्चित्त आता है। 27-28।। 7-10. क्रोधादि - सातवाँ क्रोधपिण्ड एवं आठवाँ मानपिण्ड सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर चतुः लघु, मायापिण्ड सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर मासगुरु तथा लोभपिण्ड सम्बन्धी आहार ग्रहण करने चतुः गुरु का प्रायश्चित्त आता है।।28।। 11. पूर्व - पश्चात्संस्तव - ग्यारहवाँ पूर्व-पश्चात्संस्तव दोष दो प्रकार से लगता है-1. गुण संस्तव और 2. सम्बन्धी संस्तव। गुणसंस्तव सम्बन्धी आहार
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy