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________________ 148...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण के भेद से तीन प्रकार का उपदिष्ट है। उत्कृष्ट मालापहृत सम्बन्धी दोष में चतुःलघु, जघन्य मालापहृत सम्बन्धी आहार लेने पर मासलघु तथा मध्यम मालापहृत सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर मासगुरु का प्रायश्चित्त आता है।।19-20।। ___14-15 आच्छेद्य-अनिसृष्ट- चौदहवाँ आच्छेद्य नामक दोष तीन प्रकार माना गया है-1. स्वामी विषयक 2. प्रभु विषयक और 3. स्तेन विषयक। उक्त तीनों प्रकार सम्बन्धी आच्छेद्य आहार ग्रहण करने पर चतुःलघु का प्रायश्चित्त आता है। पन्द्रहवाँ अनिसृष्ट नामक दोष-1. साधारण 2. चोल्लक और 3. जड्ड के भेद से तीन प्रकार का कहा गया है। पूर्वोक्त तीनों प्रकारों सम्बन्धी अनिसृष्ट आहार ग्रहण करने पर चतुःलघु का प्रायश्चित्त आता है।।21-22॥ 16. अध्यवपूरक-सोलहवाँ अध्यवपूरक नामक उद्गम दोष तीन प्रकार से शक्य होता है-1. यावदर्थिक 2. साधु और 3. पाखण्डी मिश्रा यावदर्थिक अध्यवपूरक सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर मासलघु तथा साधु एवं पाखण्डी मिश्र सम्बन्धी अध्यवपूरक आहार ग्रहण करने पर मासगुरु का प्रायश्चित्त जानना चाहिए।।22॥ सोलह उत्पादना दोषों के प्रायश्चित्त घाईड पंचखीराइ, भेयओ चउलहुं तु तप्पिंडे । चउलहु दूईपिण्डे, सगाम-परगामभिन्नंमि ।।24।। तिविहं निमित्तपिंडं, तिकालभेएण तत्थ तीयंमि । चउलहु अह चउगुरुयं, अणागए वट्टमाणे य ।।25।। जाइ-कुल-सिप्प-गण-कम्मभेयओ, पंचहा विणिदिट्ठो। आजीवणाइपिण्डो, पच्छित्तं तत्थ चउलहुया ।।26।। चउलहु वणीमगपिण्डे, तिगिच्छपिण्डं दुहा भणन्ति जिणा । बायर-सुहुमं च तहा, चउलहु बायरचिगिच्छाए ।।27।। सुहुमाए मासलहू, चउलहुया कोह-माणपिण्डेसु । मायाए मासगुरु, चउगुरु तह लोभपिंडंमि ।।28।। पुट्वि-पच्छासंथवमाहु , दुहा पढममित्थ गुणथुणणे। मासलहु तत्थ बीयं, संबंधे तत्थ चउलहुयं ।। 29।।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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