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________________ 142...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण 8. अपरिणत-जो वस्तु पूर्णत: अचित्त न हुई हो अथवा जिसको देने का दाता का मन न हो उसे लेना, अपरिणत दोष है। 9. लिप्त-अखाद्य वस्तु से सम्पृक्त अथवा दूध, दही आदि लेपकृत् द्रव्य लेना, लिप्त दोष है। 10. छर्दित-नीचे गिराते हुए दी जाने वाली भिक्षा ग्रहण करना छर्दित दोष है। • निम्न पाँच दोष साधु-साध्वियों के द्वारा भोजन मंडली में लगते हैं। संजोयणमइबहुयं, इंगाल सधूमगं अणट्ठाए। पंचविधा अपसत्था, तव्विवरीता पसत्था उ ।। (पिण्डनियुक्ति-303/1) 1. संयोजना-स्वाद बढ़ाने हेतु प्रासुक खाद्य पदार्थ में अन्य खाद्य वस्तु का संयोग करना, संयोजना दोष है। 2. प्रमाण-आसक्ति वश तीन बार से अधिक एवं अति मात्रा में आहार करना, प्रमाणातिरेक दोष है। 3. स-अंगार-आसक्ति वश एषणीय आहार-पानी की प्रशंसा करते हुए उसे ग्रहण करना, अंगार दोष है। 4. स-धूम-नीरस या अप्रिय आहार की निन्दा करते हुए उसे ग्रहण करना, धूम दोष है। 5. कारण-क्षुधा आदि छह कारणों के बिना आहार करना, कारण दोष है। आहार सम्बन्धी 47 दोषों की सामान्य प्रायश्चित्त विधि आधाकर्म (उद्गम दोष) सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर, औद्देशिक (उद्गम दोष) के अंतिम तीन भेद-समुद्देश, आदेश एवं समादेश सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर, मिश्रजात (उद्गम दोष) के अन्तिम दो भेद-साधु और पाखण्डी सम्बन्धी आहार स्वीकार करने पर, बादर प्राभृतिका (उद्गम दोष) सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर, सप्रत्यवाद परग्राम अभिहत सम्बन्धी, लोभपिण्ड (उत्पादना दोष) सम्बन्धी, निक्षिप्त-पिहित-संहृत-उन्मिश्र-अपरिणत एवं छर्दित एषणा सम्बन्धी अनन्त कायिक आहार में अनन्तर से दोष लगने पर, कुष्ठ रोगी, पाँव में खड़ाऊँ धारण किए हुए, जूता या पगरखी धारण किए हुए दायकों द्वारा आहारादि ग्रहण करने पर, अचित्त पिहित सम्बन्धी दोष लगने पर, संयोजना एवं इंगाल (ग्रासैषणा) सम्बन्धी दोष लगने पर तथा वर्तमान एवं
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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