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________________ 136...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण • सजीव मिट्टी को रौंदने या सचित्त मिट्टी युक्त जल का स्पर्श होने पर छट्ठ का प्रायश्चित्त आता है। जौंक नामक कीड़ा जो पानी में रहता है उसका नाश करने पर एवं अत्यन्त गहरी नदी में उतरने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • दीपक के प्रकाश का स्पर्श होने पर यथासंख्या आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • बिना कंबली ओढ़े हुए की स्थिति में दीपक के प्रकाश का स्पर्श होने पर उपवास, कंबली ओढ़े हुए की स्थिति में दीपक-प्रकाश का स्पर्श होने पर आयंबिल कंबली ओढ़े हुए की स्थिति में विद्युत् प्रकाश का स्पर्श होने पर नीवि तथा बिना कंबली ओढ़े हुए की स्थिति में विद्युत् प्रकाश का स्पर्श होने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • भौरों के घर का नाश करने पर पंच कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है। • पेट में उत्पन्न कृमि आदि जीवों को औषधोपचार से गिराने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • सचित्त जल से भीगे हुए वस्त्र का स्पर्श होने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • अग्निकायिक जीवों (बिजली आदि) का स्पर्श होने पर एवं अग्नि को बुझाने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। . नयी कोमल पत्तियों को मसलने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • संख्यात मात्रा में शंख, कौड़ी, चन्दनक आदि बेइन्द्रिय जीवों को मारणान्तिक कष्ट देने पर दो पंचकल्लाण = 20 उपवास आदि का प्रायश्चित्त आता है। • संख्यात मात्रा में कीड़ों, मकोड़ों, जूं आदि तेइन्द्रिय जीवों को मारणान्तिक कष्ट देने पर तीन पंचकल्लाण = 30 उपवास आदि का प्रायश्चित्त आता है। • संख्यात मात्रा में भौंरा, मच्छर, बिच्छू आदि चउरिन्द्रिय जीवों को प्राणघातक वेदना देने पर चार पंचकल्लाण = 40 उपवास आदि का प्रायश्चित्त आता है।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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