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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 135 एकासना, विशेष वेदना देने पर आयंबिल तथा प्राणघातक वेदना देने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • उपरोक्त नौ प्रकार के जीवों को सामूहिक रूप से पीड़ा देने पर एक कल्लाण आदि का प्रायश्चित्त आता है। • दर्प के वशीभूत होकर पंचेन्द्रिय जीवों को भयंकर कष्ट देने पर पंच कल्लाण (दस उपवास) का प्रायश्चित्त आता है। • अहंकार या धृष्टता पूर्वक तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों जैसे- हिरण, श्वान आदि को दौड़ाने पर, विविध प्रकार के कष्ट देने पर एवं जानबूझकर अवयव आदि का छेदन करने पर मूल प्रायश्चित्त आता है। • सचित्त बीज का स्पर्श होने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है। • सचित्त जल से आर्द्र या संस्पर्शित वस्तु का स्पर्श होने पर एकासना का प्रायश्चित्त आता है। • सचित्त जल से भीगी हुई मुखवस्त्रिका को ग्रहण करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • पृथ्वीकायिक जीवों एवं अप्कायिक जीवों को मारणान्तिक कष्ट देने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है तथा मतान्तर से नीवि का प्रायश्चित्त आता है। • नाभि परिमाण जल में प्रवेश करने पर तथा मषक आदि के माध्यम से नदी में एक कोश पर्यन्त गमन करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • नाव - जहाज आदि के द्वारा नदी में दो कोश पर्यन्त गमन करने पर भी आयंबिल का ही प्रायश्चित्त आता है। • एक कोश भूमि पर्यन्त रहे हुए पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, विकलेन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय आदि जीवों का मर्दन करने पर क्रमशः उपवास, आयंबिल, उपवास और पंचकल्लाण का प्रायश्चित्त आता है। • ओस गिरते समय और मिश्रोदक (सचित्त - अचित्त रूप मिश्रित जल ) गिरते समय एक कोश तक गमन करने पर पुरिमड्ढ, दो कोश तक गमन करने पर एकासना तथा एक योजन तक गमन करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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