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________________ 176... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक आदि आगम वर्णित तपों को भी गीतार्थ भाषित कहा है जबकि उन तपों की आराधना प्रायः श्रेणिक राजा की महारानियों ने की है। यह वर्णन अन्तकृत दशा नामक आठवें अंग सूत्र में है और अंग सूत्रों में तीर्थङ्करों की मूल वाणी को संकलित एवं गुम्फित मानते हैं। दूसरी बात, राजा श्रेणिक चौबीसवें तीर्थङ्कर परमात्मा महावीर के शासनकाल में हुए हैं अतः उनकी रानियों द्वारा आचरित तप तीर्थङ्कर प्रज्ञप्त होने चाहिए। इस प्रकार भले ही तप संख्या की अधिकता एवं प्रचलित सामाचारी में सर्वमान्य होने से विधिमार्गप्रपा और आचारदिनकर को मूलभूत आधार बनाया है फिर भी आगम कथित तपों का स्वरूप यथायोग्य वर्गीकरण के साथ किया जायेगा। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि इन तपों में योगोपधान मुख्य है और उसकी विधि केवली द्वारा भाषित है, अतएव इस तप की चर्चा खण्ड-3 गृहस्थ के व्रतारोपण अधिकार में कर चुके हैं। गृहस्थों के लिए योगोद्वहन-त विधान नहीं है, किन्तु मुनियों को इसे अवश्य करना चाहिए। -तप का ऐहिक फल की पूर्ति करने वाली तपस्याएँ साधु-साध्वियों तथा प्रतिमाधारी एवं सम्यक्त्वधारी श्रावकों को नहीं करनी चाहिए। शेष सभी तप गुणवान साधुसाध्वी और श्रावक-श्राविकाओं के द्वारा अवश्यमेव करणीय हैं। जैन शास्त्रों में बाह्य तप का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है । काल सापेक्ष अनेक तप भिन्न-भिन्न समय में प्रचलन में आए। कुछ का उद्देश्य लौकिक रहा तो कुछ का लोकोत्तर। तप कर्म निर्जरा का प्रमुख साधन होने से इसे आचरित करने के अनेकशः मार्ग बताए गए ताकि किसी न किसी मार्ग से व्यक्ति लक्ष्य तक पहुँच सके। आद्योपान्त जैनाचार्यों द्वारा शताधिक तपों का गुंफन किया गया है। श्वेताम्बर परम्परा में बाह्य तप का प्रचलन एवं रूझान सर्वाधिक देखा जाता है। आराधक वर्ग की इसी रुचि को ध्यान में रखकर तप विधियों को पृथक भाग के रूप में प्रस्तुत किया है। इससे तप आराधकों को तप चयन में सुविधा होगी। बड़े आकार की पुस्तक को हर समय साथ रखना दुविधापूर्ण है। तप आराधक प्रायः ऐसी पुस्तकों को साथ रखते हैं अतः Easy Carrying के लिए उसका छोटा रूप जरूरी है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर श्वेताम्बर परम्परा में उल्लेखित तपों का विस्तृत आराधना योग्य स्वरूप खण्ड-22 में प्रस्तुत किया है। तप रुचि सम्पन्न आराधक वर्ग सज्जन तप निर्देशिका का आलम्बन ले सकते हैं।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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