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________________ 152...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक मानकर उसे साध्य और साधन दोनों रूप में स्वीकार किया गया है। __आचार्य मनु कहते हैं कि संसार में जो कुछ है, वह तप ही है। इस संसार में जो कुछ भी दुर्लभ और दुस्तर है वह सब तपस्या से साध्य है। तपस्या की शक्ति दुरतिक्रम है। तप सबको जीत सकता है तप को कोई जीत नहीं सकता।81 निम्न आचरण करने वाले भी तपस्या से तप्त होकर किल्विषी योनि से मुक्त हो जाते हैं।82 इस भाँति तप की महत्ता के सम्बन्ध में अनेकों साक्ष्य वैदिक ग्रन्थों से उदधृत किये जा सकते हैं। बौद्ध धर्म की दृष्टि से- जैन और बौद्ध दोनों ही निकट पड़ोसी धर्म हैं और श्रमण धर्म के नाम से पुकारे जाते है फिर भी जैन और हिन्द-परम्परा में तप शब्द का प्रयोग जिस कठोर आचार के अर्थ में हुआ है वह बौद्ध की मध्यममार्गी साधना के कारण उतने कठोर अर्थ में प्रयुक्त नहीं है। तथागत बुद्ध मध्यम मार्ग के उपदेष्टा थे, अत: उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि तप वैसा करना चाहिए जिससे न स्वयं को और न दूसरों को कष्ट हो। बौद्ध मत में जिस प्रयास से चित्तशुद्धि होती है, वही तप है। .. आम लोगों में यह धारणा है कि महात्मा बुद्ध तप के विरोधी थे। इस तथ्य को प्रमाणित करते हुए कहा जाता है कि साधना काल के प्रारम्भ में उन्होंने छ: वर्ष तक उग्र साधना की थी, लेकिन सफलता न मिल पाने के कारण वे तपस्या से उदासीन हो गये। एक दिन कोई गायक मण्डली उनके समीप से गुजर रही थी, उनमें एक अनुभवी गायिका किसी नवशिक्षित युवती से कह रही थी सितार के तारों को इतना भी ढीला मत छोड़ो कि वे बजे ही नहीं और इतना अधिक मत कसो कि वे टूट ही जायें। तपस्या से उद्विग्न बुद्ध ने यह शब्द सुने तो बझा मन प्रकाशित हो उठा। विचार किया, यह जीवन न केवल आराम या भोगप्रधान है और न ही देहदण्ड-दमन रूप ही है। अत: मध्यम मार्ग को अपनाया जाना चाहिए, वे उस मार्ग की ओर तुरन्त प्रस्थित हो गये। यह घटना इस बात को सिद्ध करती है कि भगवान बुद्ध ने प्रारम्भकाल में तथा कुछ समय के अनन्तर युवावस्था, प्रौढ़ावस्था में भी तपश्चरण को अपनाये रखा था। हाँ! पूर्व और पश्चात की तप साधना में तारतम्यता की अपेक्षा अवश्य अन्तर रहा होगा, क्योंकि परवर्ती समय में उन्होंने मध्यम मार्ग को चुन लिया था।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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