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________________ 148... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक पुलाकलब्धि कहलाती है। इस लब्धि के प्राप्त होने पर मुनि को देवता के समान अपूर्व समृद्धि एवं बल प्राप्त हो जाता है तथा यह लब्धि सिर्फ मुनि को ही प्राप्त होती है। स्पष्ट है कि तप और चारित्र की विशिष्ट साधना के द्वारा आत्मा की समग्र शक्तियों को उद्घाटित किया जा सकता है। उपर्युक्त अट्ठाईस लब्धियाँ तो आत्मशक्ति की कल्पना हेतु उदाहरण मात्र हैं। दृष्टिवाद नामक बारहवाँ अंगसूत्र (पूर्व) में इन लब्धियों के प्राप्ति की तपस्या विधि का विस्तृत वर्णन किया गया बताते हैं, किन्तु आज वह उपलब्ध नहीं है। (ii) अष्ट महासिद्धि की प्राप्ति अष्ट सिद्धियाँ भी तप के आधीन हैं। उपाध्याय यशोविजयजी ने महासिद्धि का उल्लेख करते हुए नवपदपूजा की ढाल में कहा है कि आमोसही पमुहा बहु लद्धि, होवे जास प्रभावे । अष्ट महासिद्धि नवनिधिप्रगटे, नमीए ते तप भावे रे ।। कहने का तात्पर्य यह है कि तप साधना के प्रभाव से योगी पुरुष को अणिमादि आठ विभूतियाँ प्राप्त होती हैं, जो निम्न हैं 1. अणिमा इस शक्ति के अतिशय से साधक अपना शरीर अणु जितना बनाकर मृणालतन्तु में प्रवेश कर सकता है और वहाँ चक्रवर्ती की तरह सुखभोग कर सकता है। इतना ही नहीं, इस सिद्धि के बल से तपस्वी सर्वत्र विचरण कर सकता है और किसी की दृष्टि का विषय भी नहीं बनता। 2. महिमा इस सिद्धि के बल से साधक अपने शरीर को पर्वतादि के समान विशाल बना सकता है जैसे - मुनि विष्णुकुमार ने आवश्यकता होने पर अपने शरीर को एक लाख योजन मेरूपर्वत के परिमाण जितना बनाया था। 3. लघिमा इस सिद्धि के प्रभाव से तपस्वी अपने शरीर को आकड़े की रूई जैसा हल्का बना सकता है। 4. गरिमा इस सिद्धि के बल पर शरीर को वज्र से भी भारी बनाने की शक्ति प्राप्त होती है। 5. वशिता इस सिद्धि के फलस्वरूप प्राणीमात्र को वश में करने की विशिष्ट शक्ति प्राप्त होती है। - — - - 6. प्राकाम्य इस सिद्धि के प्रभाव से तपस्वी जल में स्थल की तरह और स्थल में जल की तरह चलने की शक्ति प्राप्त करता है । —
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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