SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 126... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक नहीं है तथापि वह शरीर के लिए अत्यन्त हितकर है। 40 वाग्भट्ट ने चिन्तन के सागर में डुबकी लगाते हुए कहा - आयुर्वेद में एक महान् औषधि है जो न भूमि पर पैदा होती है, न पर्वत पर और जल में ही । उस औषधि का नाम है लंघन | 41 योगी उस उत्तर को सुनकर प्रसन्न वदन वहाँ से प्रस्थित हो गया। इस वर्णन से निर्णीत होता है कि आयुर्वेद की अपेक्षा तप का गहरा महत्त्व है। प्राकृतिक चिकित्सा की दृष्टि से- आधुनिक युग में प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति लोकमानस में अत्यधिक प्रिय बन चुकी है। यह अवगत होना चाहिए कि इस चिकित्सा पद्धति में किसी तरह की औषधि का उपयोग नहीं होता, केवल सात्त्विक भोजन या उपवास के द्वारा शारीरिक शुद्धि करवायी जाती है। कुछ समय पूर्व इस चिकित्सा में चिकित्सज्ञ उपवास के दौरान नीबू, शहद, लोंग आदि का उपयोग करना आवश्यक मानते थे, परन्तु शनै: शनै: गहरे अनुसन्धान के बल पर वे इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि उपवास में केवल गरम पानी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं लेना चाहिए। उनका अभिमत यह है कि जब शरीर में भारीपन महसूस हो, दर्द, अपच या ज्वर आदि की स्थिति पैदा हो उस समय उपवास कर लेना चाहिए। उपवास से शरीर में जो निरुपयोगी या गन्दे कोश हैं वे शीघ्र ही बाहर निकल जाते हैं और शरीर रोगों से ठीक हो जाता है । उपवास द्वारा शरीर में हुई रक्त कणों की कमी धीरे-धीरे पूरी हो जाती है अर्थात श्वेत कण (WBC) क्रमश: घटने लगते हैं और रक्त कण (RBC) बढ़ने लगते हैं। इसके सिवाय यदि शरीर में शर्करा की मात्रा अधिक हो तो वह जलकर नष्ट हो जाती है। 42 वस्तुतः उपवास के प्रारम्भिक काल में शरीर यन्त्र शुद्धि प्रारम्भ करता है जिससे शरीर में रहे हुए पुराने दोष मूत्र के द्वारा निर्गत होते हैं। गुर्दा मूत्र के द्वारा अन्दर में रहा हुआ कूड़ा बाहर फेंकता है । जब शरीर के सभी मल बाहर निकल जाते हैं तब मूत्र आदि में पूर्ण स्वाभाविकता आ जाती है। शरीर में बढ़ी हुई अम्लता भी उपवास से कम हो जाती है। कितने ही व्यक्तियों को उपवास काल में सिरदर्द, वमन, बेचैनी, घबराहट आदि अधिक मात्रा में होने लगती है। इससे अधिकांश व्रती यह समझते हैं कि अम्लता में वृद्धि हो रही है पर वास्तविकता यह है कि इससे पित्त आदि शरीर से बाहर होकर उसे रोगमुक्त बनाते हैं। जो अम्लता बाद में परेशान करती या नष्ट होती वह उपवास द्वारा पहले उदय में आकर क्षीण हो जाती है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy