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________________ तप साधना की उपादेयता एवं उसका महत्त्व...125 का मूल है और इसके माध्यम से समग्र सिद्धियाँ एवं समृद्धियाँ पायी जा सकती हैं। अन्य प्राचीन ग्रन्थों में तप का वैशिष्ट्य बतलाते हुए कहा गया है कि अथिरंपि थिर वंकंपि, उज्जुअं दुल्लहं वि तह सुलहं । दुरुज्झं वि सुरूझं, तवेण संपज्जए कज्जं ।। अर्थात तप के प्रभाव से अस्थिर मन स्थिर होता है, वक्र चित्त वाला सरल हो जाता है, दुर्लभ वस्तु सुलभ हो जाती है और दीर्घ प्रयत्न से सिद्ध होने वाला कार्य सरलता से हो जाता है। इससे अधिक क्या कहा जाये? जगत में कहीं भी किसी प्रकार का सुख देखा जाता है उसका कारण तप ही है। आयुर्वेद की दृष्टि से- अनुभूति के स्तर पर कहा जाता है कि तप से तन की शुद्धि होती है, शरीर में रक्त का प्रवाह सही रूप से होता है, पाचनतन्त्र ठीक से संचालित रहता है। नियमित भोजन के सेवन से पाचन क्रिया गड़बड़ा जाती है, क्योंकि भोजन को पचाने वाला तन्त्र भी एक प्रकार से मशीन जैसा कार्य करता है। किसी भी मशीन का अधिक उपयोग करने पर उसका खराब होना निश्चित है जबकि तपस्या करते रहने पर उसे विश्राम मिलता है। दूसरी बात जब पाचन क्रिया ठीक नहीं होती है तो कई बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, किन्तु तप से रोगों का शमन होता है जैसे कि किसी व्यक्ति को कब्ज की तकलीफ है तो समझिये उसकी अग्नि (पाचनतन्त्र) मन्द है और उसके कारण गैस आदि बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं लेकिन तप करने से अग्नि की शक्ति स्वयमेव बढ़ जाती है और उसके प्रभाव से पाचनतन्त्र सुचारु रूप से कार्य करने लगता है। परिणामत: कब्जियत आदि की समस्याएँ दूर हो शरीर स्वस्थता को प्राप्त होता है। तप के दौरान नवीन अन्न ग्रहण न करने से पूर्व भुक्त अन्न का पाचन भी सम्यक् प्रकार से हो जाता है जिससे पुराने दोष भी नष्ट हो जाते हैं। प्रत्युत जमा हुआ पुराना मल तप से भस्म हो जाता है। कहने का भावार्थ यह है कि तप साधना से शरीर निरोग व पूर्ण स्वस्थ रहता है। किंवदन्ती है कि एक बार देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार अद्भुत योगी का रूप बनाकर महान् चिकित्सक आचार्य वाग्भट्ट के पास पहुंचे, उनसे प्रश्न किया - वैद्य प्रवर! ऐसी कौनसी औषध है जो न पृथ्वी पर पैदा होती है, न पर्वत पर लगती है और न ही जल में पैदा होती है, जिसमें किसी प्रकार का रस
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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