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________________ 110...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक आचार्य भद्रबाह ने कहा है जैसे- मलिन वस्त्र जल आदि शोधक द्रव्यों से उज्ज्वल हो जाता है वैसे ही भाव तप के द्वारा कर्म मल से मुक्त होकर आत्मा शुद्ध व पवित्र बन जाती है। __हम देखते हैं कि मनुष्य कोई भी काम करता है तो उसके सामने उस कार्य-फल की कल्पना भी रहती है। साथ ही उसका उद्देश्य और लक्ष्य भी रहता है। एक कवि ने कहा है - लक्ष्यहीन फलहीन कार्य को, मूरख जन आचरते हैं। सुज्ञ सुधीजन प्रथम कार्य का, लक्ष्य सुनिश्चित करते हैं ।। जब सामान्य कार्य भी लक्ष्य के बिना नहीं होता, तब तप जैसा दुरूह, कठोर, देह दमनीय कार्य बिना लक्ष्य-परिणाम के कैसे सम्भव है? अत: मानना होगा कि तप का उद्देश्य भी निश्चित है। एक बार भगवान महावीर राजगृह नगर में पधारे। वहाँ गणधर गौतम ने प्रभु से कई प्रश्न पूछे। उनमें एक प्रश्न तप के विषय में पूछा - भगवन् ! तप करने से जीव को किस फल की प्राप्ति होती है? भगवान ने उत्तर में कहा - “तवेण वोदाणं जणयइ” तप से व्यवदान होता है। व्यवदान का अर्थ है - दूर हटाना। आदान का अर्थ है - ग्रहण करना। सुस्पष्ट है कि आत्मा तपस्या के द्वारा कर्मों को दूर हटाता है, कर्मों का क्षय करता है, अशुभ कर्मों को निर्जरित करता है। बस यही तप का उद्देश्य है और यही तप का फल है। जैन परम्परा में प्रभु महावीर को तपोयोगी और प्रभु पार्श्वनाथ को ध्यानयोगी माना गया है। भगवान पार्श्वनाथ के युग में अज्ञान तप का बोलबाला था। लोग भौतिक सिद्धियों के लिए तप करते थे, पंचाग्नि साधते थे, वृक्षों पर ओंधे लटकते थे। यदि कोई उनसे पूछता कि आप यह तप, जप, यज्ञ आदि क्यों करते हो? तो उनका एक ही उत्तर होता – “स्वर्गकामो यजेत" अर्थात स्वर्ग की प्राप्ति हेतु यज्ञ तप करो। अमुक शक्ति को पाने के लिए तप करो इससे आगे उनका कोई उद्देश्य नहीं था जबकि भगवान पार्श्वनाथ ने जनता को तप का उद्देश्य समझाते हुए कहा – तप शरीर को सुखाने या ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिए नहीं, किन्तु आत्मा को कर्म बन्धनों से मुक्त करने के लिए है। जो बात भगवान महावीर ने कही वही बात भगवान पार्श्वनाथ ने भी कही थी। आज भले ही उनके स्वयं के वचन हमारे पास नहीं हैं, किन्तु उनकी परम्परा के विद्वान्
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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