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________________ 38...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक ___8. वक्रगति – टेढ़ी गति से गमन करते हुए भिक्षा मिलेगी तो ही लूंगा, इस संकल्प से भिक्षाचर्या करना वक्रगति है। भिक्षा विधि के प्रकार जैन मुनि निर्दोष एवं गृहस्थ के स्वयं के लिए बनाया गया आहार ही ग्रहण करता है। इस प्रकार के आहार की खोज करना शास्त्रीय भाषा में एषणा कहलाता है। आगमों में एषणा तीन तरह की कही गयी है, उनमें पिण्डैषणा (आहार एषणा) के सात भेद कहे गये हैं। इन अन्तर्गत भेदों का पालन करने से भिक्षाचर्या तप का आचरण होता है। वे सप्त भेद इस प्रकार हैं7 1. संसृष्ट – खाद्य वस्तुओं से लिप्त हाथ या पात्र से दी गयी भिक्षा लेना संसृष्ट पिण्डैषणा कहलाती है। 2. असंसृष्ट - जिस कोटि का भोजन दिया जा रहा है उससे बिना सने हुए हाथ या पात्र से दी गयी भिक्षा लेना, असंसृष्ट है। 3. उद्धृता – गृहस्थ के अपने प्रयोजन के लिए रांधने के पात्र से दूसरे पात्र में निकाला गया आहार लेना, उद्धृता कहलाता है। 4. अल्पलेपा - अल्पलेप वाली रूखी वस्तु जैसे- चना, चिवड़ा आदि लेना अल्पलेपा पिण्डैषणा कहलाती है। 5. अवगृहीता - गृहस्थ के स्वयं के खाने के लिए थाली में परोसा हुआ आहार लेना, पाँचवीं पिण्डैषणा है। 6. प्रगृहीता - पारिवारिक सदस्यों को परोसने के लिए कड़छी या चम्मच से निकाला हुआ आहार लेना, पिण्डैषणा का छठा प्रकार है। 7. उज्झितधर्मा - जो भोजन मन के अनुकूल न होने के कारण परित्याग करने योग्य हो, उसे लेना सातवीं पिण्डैषणा है। . भिक्षा अभिग्रह के प्रकार- भिक्षाचर्या तप का उत्कृष्ट आचरण करने के उद्देश्य से श्रमण अभिग्रह (विशिष्ट नियम) पूर्वक भिक्षा स्वीकार करता है। वह अभिग्रह निम्नोक्त चार प्रकार का कहा गया है।8_ __ 1. द्रव्य अभिग्रह – मुनि भिक्षा के लिए प्रस्थान करने से पूर्व विचार करे कि आज उड़द के बाकुले, चने आदि अमुक द्रव्य मिलेगा तो ही ग्रहण करूंगा अन्यथा उपवास करूंगा, यह द्रव्य अभिग्रह कहलाता है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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