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________________ तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...37 प्रकाश डाला गया है। इनका यथाविधि परिपालन करने से भिक्षाचरी तप का अनुपालन होता है। उत्तराध्ययन के अनुसार यह विवरण निम्न प्रकार है46 जैन मुनि निम्न अष्टविध विकल्पों में से किसी एक का निर्णय कर भिक्षा हेतु प्रस्थान करता है। इससे भिक्षाचर्या तप का पालन होता है। 1. पेटा - पेटी (सन्दूक) की तरह गाँव के घरों के चार भाग बनाकर चौकोर गति से (बीच के घरों को छोड़ चारों दिशाओं में स्थित घरों में) घूमते हुए भिक्षा मिलेगी तो लूंगा अन्यथा नहीं, इस संकल्प से भिक्षा प्राप्त करना पेटा है। 2. अर्द्धपेटा - अर्द्धपेटा (आधी सन्दूक) की भाँति द्विकोण (दो दिशाओं के घरों) में घूमते हुए भिक्षा प्राप्त होगी तो लूलूंगा अन्यथा नहीं, इस संकल्प से भिक्षाटन करना अर्द्धपेटा है। 3. गो-मूत्रिका - गोमूत्र की धारा के समान टेढ़ी-मेढ़ी गति से अर्थात दायें घरों से बायें और बायें से दायें घरों में जाते हुए भिक्षा मिलेगी तो लूंगा अन्यथा नहीं, इस संकल्प से भिक्षा ग्रहण करना गो-मूत्रिका है। 4. पतंगवीथिका - जैसे पतंगा अनियत क्रम से उड़ता है वैसे अनियत क्रम से घूमते हुए भिक्षा मिलेगी तो लूंगा अन्यथा नहीं, इस संकल्प से आहार प्राप्त करना पतंगवीथिका है। 5. शम्बूकावा - शंख के आवर्तों की तरह गोल घूमते हए भिक्षा मिलेगी तो ही लूंगा अन्यथा नहीं, इस संकल्प से आहार प्राप्त करना शम्बूकावर्त कहलाता है। यह भिक्षाचर्या दो तरह से की जाती है - शंख के नाभि-क्षेत्र से प्रारम्भ कर बाहर आने वाले आवर्त की भाँति गाँव के भीतरी भाग से भिक्षाटन करते हुए बाहरी भाग में आना आभ्यन्तर शम्बूकावर्त कहा जाता है तथा बाहर से भीतर जाने वाले शंख आवर्त की भाँति गाँव के बाहरी भाग से भिक्षाटन करते हुए भीतरी भाग में आना बाह्य शम्बूकावर्त कहा जाता है। 6. आयतगत्वा- प्रत्यागता - एक तरफ के घरों से भिक्षा ग्रहण करते हुए गली के अन्तिम छोर तक जाकर लौटते हुए दूसरी पंक्ति के घरों से भिक्षा ग्रहण करूँगा, इस संकल्प से भिक्षाचरी करना आयत गत्वा-प्रत्यागता कहलाता है। 7. ऋजुगति - सरल गति से भ्रमण करते हुए भिक्षा ग्रहण करूँगा, इस विचारपूर्वक भिक्षाटन करना ऋजुगति है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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