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________________ 34... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन को श्रेष्ठ मानने का दूसरा कारण यह बताया जाता है कि सूर्योदय के तुरन्त बाद या सूर्यास्त से पूर्व आहार लेने पर शंका हो सकती है। दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र के अनुसार जो भिक्षु सूर्योदय एवं सूर्यास्त के प्रति शंकित होकर आहार ग्रहण करता है उसे रात्रिभोजन का दोष लगता है। रात्रिभोजन के दोष से पंच महाव्रत खण्डित होते हैं और अष्ट प्रवचन माता के परिपालन में शिथिलता आती है।16 तीसरा तथ्य है कि रात्रि में आहारार्थ गमन करने पर गृहस्थ या अन्य किसी के मन में यह शंका उत्पन्न हो सकती है कि मुनिवेश में यह कोई चोर-उचक्का तो नहीं है? साथ ही आत्म विपत्ति के भी अनेक प्रसंग उपस्थित हो सकते हैं अत: भिक्षागमन के लिए मध्याह्नकाल ही श्रेष्ठतम है।17 दिगम्बर मुनि खड़े-खड़े एवं करपात्री में ही भोजन क्यों करते हैं? - पण्डित आशाधर एवं आचार्य वट्टकेर ने मुनि द्वारा खड़े होकर भोजन करने के निम्न प्रयोजन बतलाए हैं- 'जब तक मैं समर्थ हूँ तब तक भोजन करूँगा, अन्यथा नहीं करूँगा' इस प्रकार की प्रतिज्ञा का निर्वाह करने के लिए तथा इन्द्रिय संयम और प्राण संयम के लिए मुनि खड़े होकर भोजन करते हैं। बैठकर या पात्र में भोजन न करने के पीछे यह हेतु बतलाया गया है कि हथेली शुद्ध होती है। यदि उनके नियमानुसार भोजन में अन्तराय आ जाये तो अधिक झूठा छोड़ना नहीं पड़ता, जबकि पात्र भोजी होने पर अन्तराय आ जाये तो भरी थाली का भी परिहार करना पड़ सकता है, जिससे प्रगाढ़ कर्मों का बंध संभव है। बैठकर भोजन करने पर अधिक भोजन भी हो सकता है तथा उस स्थिति में इन्द्रिय नियन्त्रण करना अशक्य हो जाता है। इसलिए दिगम्बर मुनि उर्ध्व स्थित और कर पात्र में भोजन करते हैं। एक चौके में एकाधिक साधु एक साथ आहार ले सकते हैं? दिगम्बर परम्परा के प्रसिद्ध जैनाचार्य अमितगति ने योगसार में कहा है कि आहार देते समय गृहस्थ को यह ध्यान रखना चाहिए कि जिस मुनि के लिए हाथ से आहार लें वह आहार उसी मुनि को देना चाहिए, अन्य मुनि को नहीं। यदि कोई मुनि अन्य के निमित्त दिए जाने वाले आहार को लेता है तो उसे छेद प्रायश्चित्त आता है।18 इस उल्लेख से दो बातें स्पष्ट होती हैं-1. एक चौके में एक साथ एकाधिक साधु आहार ले सकते हैं। 2. आहार लेते समय विशेष सावधानी
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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