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________________ 30... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन वहाँ जाए और कभी न जाए तो भी आहार नष्ट नहीं होता। यदि मुनि के निमित्त से भोजन बने और वह Waste हो जाये तो गृहस्थ के मन में मुनि के प्रति रोष उत्पन्न हो सकता है। निमित्त का आहार न लेने से खाद्य सामग्री का अपव्यय नहीं होता। इससे आहार एवं अर्थ प्रबंधन में गृहस्थ को सहयोग प्राप्त हो सकता है। निमित्त पूर्वक बनी हुई वस्तु इच्छा-अनिच्छा, आवश्यकता-अनावश्यकता आदि में भी लेनी ही पड़ती है, इससे स्वाध्याय आदि में हानि होती है जबकि निर्दोष आहार में इन समस्याओं के उत्पन्न होने की संभावनाएँ ही नहीं रहती । निर्दोष आहार में स्वाद लोलुपता नहीं बढ़ती एवं इससे इन्द्रिय नियंत्रण रहता है। इसी तरह निमित्त से नहीं बने आहार में निर्माता के भावों पर भी अधिक प्रभाव पड़ता है जिससे साधु का भाव जगत प्रभावित होता है। इस प्रकार भाव प्रबंधन की दृष्टि से भी निर्दोष आहार आवश्यक प्रतीत होता है। प्रथम भिक्षाचर्या हेतु शुभ दिन आवश्यक क्यों? आचार्य जिनप्रभसूरि के अनुसार नव दीक्षित मुनि को प्रथम भिक्षा के लिए शुभ मुहूर्त में जाना चाहिए। वर्तमान में इस नियम का निर्वाह किया जाता है या नहीं ? इसके समाधान में यह कहा जा सकता है कि जैन दर्शन अनेकांतवादी दर्शन है। यह निश्चय और व्यवहार दोनों का समन्वय करके चलता है । निश्चय दृष्टि से तो सभी अपने कर्मोदय के अनुसार लाभ प्राप्त करते हैं। परन्तु व्यवहार में किसी भी शुभ कार्य के लिए सर्वप्रथम मुहूर्त्तादि का विचार किया जाता है। भिक्षाटन, मुनि जीवन की आवश्यक क्रिया है। यदि किसी अशुभ काल में प्रथम बार भिक्षार्थ जाने से मुनि पर कोई उपद्रव हो जाए, उसे सहर्ष भिक्षा प्राप्त न हो, पात्र आदि टूट जाए अथवा बीमार पड़ जाए तो इससे मुनि के मन में खेद `उत्पन्न हो सकता है तथा हीन भाव भी उत्पन्न हो सकते हैं। प्रथम भिक्षा शकुन रूप में भी देखी जाती है । उस दिन नूतन दीक्षित को जिस प्रकार का आहार प्राप्त होता है उससे उसके आहार जोग का ज्ञान भी गीतार्थ गुरु कर लेते हैं, इसलिए प्रथम भिक्षार्थ भेजने के निमित्त शुभ नक्षत्र आदि का योग बल देखना व्यवहारतः उचित है। आजकल कुछ सम्प्रदायों में ऐसी परम्परा भी प्रचलित हो गई है कि
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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