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________________ अशन पान लेह्य भिक्षा विधि का स्वरूप एवं उसके प्रकार ...15 जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश में आहार के उपर्युक्त प्रकारों को निम्न चार भागों में वर्गीकृत किया गया है-1. कर्माहारादि 2. खाद्यादि 3. कांजी आदि और 4. पानक आदि। इस वर्गीकरण में कौनसा आहार किसके अन्तर्भूत माना गया है स्पष्ट तालिका इस प्रकार है-30 आहार 1. कर्माहारादि 2. खाद्यादि 3. कांजी आदि 4. पानकादि कर्माहार कांजी स्वच्छ नोकर्माहार आचाम्ल बहल कवलाहार खाद्य बेलड़ी अलेपकृत लेप्याहार ससिक्थ ओजाहार स्वाद्य असिक्थ मुनि सम्बन्धी आहार में विशेष रूप से उपयोगी अलेप, अल्पलेप आदि का स्वरूप निम्न प्रकार है अलेप- ओदन, मण्डक, सत्तू, कुल्माष, चवला, चना आदि। अल्पलेप- बथुए आदि का शाक, यवागू, कोद्रव, तक्र-उल्लण, सूप, कांजी, तीमन (छाछ) आदि। बहुलेप- दूध, दही, खीर, कट्टर (कड़ी में डाला गया घी का बड़ा) फाणित आदि।31 लेपकृत पानक-इक्षुरस, द्राक्ष पानी, दाडिम पानी आदि। अलेपकृत पानक- तिलोदक, तुषोदक, यवोदक, कांजी, ओसामन, गर्म जल, चावलों का धोवन आदि।32 आहार सेवन के प्रकार दिगम्बर परम्परा के रयणसार, चारित्रसार एवं तत्वार्थवार्त्तिक आदि ग्रन्थों में आहार सेवन के निम्न पाँच प्रकार उल्लेखित हैं 1. उदराग्नि प्रशमन- जितने आहार से उदर की अग्नि (क्षुधाग्नि) शान्त हो, उतना आहार ग्रहण करना उदराग्नि प्रशमन आहार है। इस कोटि का आहार करने से तपश्चर्या का अभ्यास होता है। 2. अक्षमृक्षण- बैलगाड़ी के पहियों का आधारभूत काष्ठ अक्ष कहलाता है। उसे तेलादि से मिश्रित स्निग्ध पदार्थ द्वारा लिप्त करना अक्षमृक्षण कहा जाता
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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