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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...169 208. वही, 549-551 की टीका, पृ. 152-53 209. वही, 544 210. सच्चित्तेण व पिहिदं, अथवा अचित्तगुरुगपिहिदं च । तं छंडिय जं देयं, पिहिदं तं होदि बोधव्वो॥ (क) मूलाचार, 466 सचित्तेन स्थगितम्। (ख) प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 436 211. पिण्डनियुक्ति, 558 की मलयगिरि टीका, पृ. 154 212. वही, 561 / वही, 155 213. मत्तगगयं अजोग्गं, पुढवाइसु छोदु देइ साहरियं । (क) पंचवस्तुक, 764 (ख) पिण्डनियुक्ति, 565 अन्यत्र प्रक्षिप्तम्। (ग) प्रवचनसारोद्वार टीका, पृ. 437 214. मूलाचार, 467 215. अनगार धर्मामृत, 5/33 216. पिण्डनियुक्ति, 564 217. पिण्डनियुक्ति टीका, पृ. 165 218. पिण्डनियुक्ति, 572-77 219. दशवैकालिकसूत्र, 5/1/29, 40, 42,43 220. (क) ओघनियुक्ति, 467-468, (ख) पंचाशक प्रकरण, 13-28 221. मूलाचार, 468-71 222. प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 151-153 223. पिण्डविशुद्धिप्रकरण, 85-88 224. अनगार धर्मामृत, 5/34 225. पिण्डनियुक्ति, 597-604 226. उन्मिश्रं सचित्त सम्मिश्रम्। प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 446
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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