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________________ 168... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन 194. संकिय मक्खिय निक्खित्त, पिहिय साहरिय दायगुम्मीसे। अपरिणय लित्त छड्डिय, एसण दोसा दस हवंति ॥ (क) पिण्डनियुक्ति, 520 (ख) जीतकल्पभाष्य, 1476 (ग) पिण्डविशुद्धिप्रकरण, 72 (घ) पंचवस्तुक, 762 (च) पंचाशक प्रकरण, 13/26 (छ) प्रवचनसारोद्धार, 568 195. (क) मूलाचार, 463 (ख) आघाकर्मादिदोषवत्तया आरेकितस्य भक्तादेर्ग्रहणं स्वीकारः शंकितग्रहणम्। पिण्डविशुद्धिप्रकरण टीका पृ. 71 (ग) शंकितं सम्भाविताधाकर्मादिदोषम्। प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 432 196. दशवैकालिकसूत्र, 5/1/44 197. (क) पिण्डनियुक्ति, 521 (ख) जीतकल्प भाष्य, 1477-1478 198. पिण्डनियुक्ति, 525 199. मूलाचार, 464 200. (क) समवायो, 20/1 (ख) दशाश्रुतस्कन्ध, 1/3 201. प्रक्षिप्तं सचित्तपृथिव्यादिनाऽवगुण्ठितम्। पिण्डनियुक्ति मलयगिरि टीका, पृ. 147 202. (क) पिण्डनियुक्ति, 532 - (ख) जीतकल्प भाष्य, 1491 203. वही, 534, वही, 1494 204. वही, 537 205. मूलाचार, 465 206. दशवैकालिकसूत्र, 5/1/59, 61-62 207. पिण्डनियुक्ति, 543
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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