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________________ 158... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन 25. भगवतीसूत्र (अंगसुत्ताणि-2), 5/139-145 26. बृहत्कल्पभाष्य, गा. 3541 की टीका, पृ. 986 27. वही, गा. 5356-5658 की टीका, पृ. 1422-1423 28. वही, गा. 5359 की टीका, पृ. 1423 29. पिण्डनियुक्ति टीका, पृ. 87 30. (क) उद्दिस्स कज्जइ तं उद्देसियं, साधु निमित्तं आरंभोत्ति वुत्तं भवति। दशवैकालिक जिनदास चूर्णि, पृ. 111 (ख) उद्देशनं साध्वाद्याश्रित्य दानारम्भस्येत्युद्देशः। दशवैकालिक हारिभद्रीयावृत्ति, प. 116 (ग) उद्देश: यावदर्थिकादिप्रणिधानं तेन निर्वृत्तमौद्देशिकम्। पिण्डनियुक्ति वृत्ति, पत्र 35 (घ) उद्देसिय साहुमादी ओमच्चए भिक्खवियरणं जं च। पंचवस्तुक, 744 31. मूलाचार, 425 32. (क) पिण्डनियुक्ति, 219 (ख) प्रवचनसारोद्धार, पृ. 267 33. पिण्डनियुक्ति, 220-221 34. पिण्डनियुक्ति, गा. 228 की टीका, पृ. 79 35. पिण्डनियुक्ति टीका, पृ. 77 36. वही, पृ. 77 37. वही, पृ. 77, 82 38. इन भेदों के विस्तार हेतु देखिए पिण्डनियुक्ति, गा. 232-237 की टीका, पृ. 80-81 39. (क) दशवैकालिकसूत्र, 10/4 (ख) सूयगडो, 1/9/14 40. पिण्डनियुक्ति, 243-244 41. पिण्डनियुक्ति टीका, पृ. 83, यहाँ उद्गम दोष में आधाकर्म, औदेशिक आदि अविशोधि कोटि का ग्रहण किया गया है। 42. अनगार धर्मामृत, 5/9 की टीका, पृ. 381 43. (क) पिण्डनियुक्ति, 243 (ख) निशीथ भाष्य, 805-811
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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