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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ... 157 5. कोडिज्जंते जम्हा, बहवो दोसा उ सहियए गच्छं । कोडित्ति तेण भण्णति । जीतकल्पभाष्य, 1287 6. पिण्डनिर्युक्ति, 401 7. यद्दोषस्पृष्ट भक्ते, तावन्मात्रेऽपनीते सति शेषं कल्पते स दोषो विशोधिकोटिः, शेषस्त्व विशोधिकोटिः । पिण्डनिर्युक्ति टीका पृ. 116 8. पिण्डनिर्युक्ति, 393 9. पिण्डनिर्युक्ति टीका, पृ. 117 10. पिण्डनिर्युक्ति, 97 11. भगवतीटीका, भा. 1, पृ. 102 12. सूयगडो, 1/10/8 13. (क) पिण्डनियुक्ति टीका, पृ. 36 (ख) जीतकल्पभाष्य, 117 14. पिण्डनिर्युक्ति, गा. 106 की टीका, पृ. 43 15. बृहत्कल्पभाष्य टीका, पृ. 1142 16. पिण्डनिर्युक्ति, 183 17. नणु मुणिणा जं न कयं, न कारियं नाणुमोइयं तं से। गिहिणा कडमा इयमो, तिगरणसुद्धस्स को दोसो ॥ पिण्डविशुद्धि प्रकरण, 26 18. (क) पिण्डनिर्युक्ति, गा. 185 की टीका, पृ. 69 (ख) जीतकल्पभाष्य, 1184 19. (क) पिण्डनिर्युक्ति, गा. 186 की टीका, पृ. 69 (ख) जीतकल्पभाष्य, 1185 20. (क) पिण्डनिर्युक्ति, 188 (ख) जीतकल्पभाष्य, 1188 21. पिण्डनिर्युक्ति, 191 22. पिण्डनिर्युक्ति, 194 23. भगवतीसूत्र, 1/9/26 24. वही, 1/1/3/1-4
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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