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________________ 144... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन • यक्षाविष्ट व्यक्ति पवित्र और भद्र हो, कम्पमान व्यक्ति के हाथ से वस्तु नहीं गिर रही हो या उसके द्वारा बर्तन मजबूती से पकड़ा हुआ हो या अन्य द्वारा पकड़कर भिक्षा दिलाई जा रही हो, ज्वरित व्यक्ति का ज्वर उतर गया हो, अन्धा व्यक्ति देय वस्तु को पुत्र आदि के हाथ के सहारे दे रहा हो तो इन सबके हाथ से भिक्षा ली जा सकती है। • जिसके शरीर पर सफेद दाग जैसा कोढ़ हुआ हो, किन्तु झरता हुआ कोढ़ न हो, तो परिस्थिति विशेष में कोढ़ी व्यक्ति से भिक्षा ली जा सकती है। • पादुकारूढ व्यक्ति अपने स्थान पर खड़ा होकर ही भिक्षा दे रहा हो, सांकल से बंधा व्यक्ति चलने में कष्ट का अनुभव न करता हो, हाथ-पैर कटा व्यक्ति बैठा हुआ हो, पास में अन्य गृहस्थ न हो तो इन सभी के हाथ से भिक्षा ली जा सकती है। • यदि नपुंसक दुराचार सेवन करने वाला न हो या ऋषि आदि के शाप से नपुंसक बना हो तो उससे भिक्षा ली जा सकती है। • जिनकल्पी मुनि गर्भवती स्त्री मात्र से तथा जिसका शिशु अभी बाल अवस्था में है उस स्त्री से भिक्षा नहीं ले सकते है, जबकि स्थविर कल्पी आठ मास तक गर्भिणी के हाथ से भिक्षा ले सकते हैं, नौवें महीने में यदि बैठे-बैठे दी जाए तो भिक्षा ले सकते हैं। • मूंग आदि का खंडन करती हुई नारी मूसल को निरवद्य स्थान में रखकर भिक्षा दे सकती है। यदि कढ़ाई में डाले हुए चने आदि भुंजकर नीचे ले लिए गये हों, दूसरे पूंजने के लिए अभी हाथ में न उठाये हों तो ऐसी स्थिति में मुनि भिक्षा ले सकता है। • इसी प्रकार अचित्त धान्य पीसती हुई, शंखचूर्ण आदि से अस्पृष्ट दही को मथती हुई, सचित्त चूर्ण से अलिप्त हाथों द्वारा सूत कातती हुई और जहाँ भी पश्चात्कर्म आदि दोषों की संभावनाएँ न हों उन सभी के हाथों से भिक्षा ली जा सकती है। • नियमत: जहाँ षटकायिक जीवों की विराधना संभावित हो, वहाँ कोई अपवाद नहीं होता। इसी दृष्टिकोण से प्रारंभ के पच्चीस व्यक्तियों के हाथ से उक्त स्थितियों में भिक्षा ली जा सकती है जबकि शेष के हाथों से भिक्षा लेना सर्वथा निषिद्ध है।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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