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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...143 • सचित्त नमक, जल, अग्नि, हवा भरी हुई मशक, बीज युक्त फल आदि को नीचे रखती हुई, सचित्त पृथ्वी आदि का स्पर्श करती हुई, संघट्टा करती हुई, सचित्त जल से स्नान करती हुई नारी से भिक्षा लेने पर त्रस-स्थावर जीवों का आरंभ होने से हिंसा का दोष लगता है । • दही आदि से संसक्त हाथ आदि द्वारा भिक्षा लेने पर त्रस जीवों की हिंसा होती है। • बड़ा पात्र उठाकर भिक्षा दे रही हो तो उसके तलिए पर रहे सूक्ष्म जीवजन्तु मर सकते हैं। साधारण दात्री से भिक्षा लेने पर सोलह उद्गम दोषों में पन्द्रहवें अनिसृष्ट दोष के समान सभी दोष लगते हैं। • पुत्रवधू आदि के द्वारा चुराई गई वस्तु ग्रहण करने पर बन्धन, ताड़न आदि दोषों की संभावनाएँ रहती है। • बलि आदि के निमित्त स्थापित अग्रपिंड की भिक्षा लेने पर प्रवर्त्तन आदि दोष लगते हैं। • संभावित भय वाली दात्री से भिक्षा लेने पर साधु के भय की संभावना रहती है। को भी मृत्यु आदि • अन्य साधु के लिए रखा गया अथवा ग्लान आदि के निमित्त से भिक्षा लेने पर अदत्तादान का दोष लगता है। • यदि कोई जानबूझकर अशुद्ध भिक्षा दें तो उसे लेने पर आधाकर्म आदि एषणा के दोष लगते हैं। अपवाद - पिण्डनिर्युक्ति के अनुसार बालक, वृद्ध, गर्भिणी आदि के हाथ से भिक्षा लेने का निषेध वैकल्पिक है अतः निम्न स्थितियों में उनके हाथ से भिक्षा ली जा सकती है। 225 • बालक को माँ आदि की अनुज्ञा प्राप्त हो गई हो अथवा घर के प्रमुख व्यक्तियों ने यह कह दिया हो कि कोई भी साधु पधारे तो इतना - इतना अहारादि दे देना हम लोग बाहर जा रहे हैं तो उससे भिक्षा ली जा सकती है। • वृद्ध व्यक्ति यदि अन्य व्यक्ति का सहारा लिये हुए हो, सुदृढ़ शरीर वाला हो अथवा घर का स्वामी हो तो उससे भिक्षा ली जा सकती है । • उन्मत्त व्यक्ति श्रावक हो, परवश न हो, भद्र प्रकृति वाला हो, वहाँ अन्य गृहस्थ न हो तो उससे भिक्षा ली जा सकती है।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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