SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...137 • तेउकाय के साथ वायुकाय का अस्तित्व जुड़ा रहता है अत: तेउकाय की तरह वायुकाय परंपर और वायुकाय अनन्तर संहृत समझ लेना चाहिए। • फल आदि पर रखी गई भिक्षा लेना, वनस्पतिकाय अनन्तर संहृत दोष है। • तुरन्त सुधारे हुए फल आदि के पात्र में डालकर दी गई भिक्षा लेना, वनस्पतिकाय परंपर संहृत दोष है। • त्रसकाय के संदर्भ में चींटी आदि जीव जन्तु युक्त स्थान पर रखी गई भिक्षा लेना, त्रसकाय अनन्तर संहत दोष है। • चींटी आदि से सने हुए पात्र को खाली कर उसमें दी जा रही भिक्षा लेना, त्रसकाय परंपर संहत दोष है। ___परिणाम - सचित्त अनन्तर संहत दोष वाली भिक्षा मुनि के लिए सर्वथा निषिद्ध है क्योंकि इसमें संघट्टा एवं जीव हिंसा की पूर्ण संभावना रहती है। यदि सचित्त पंरपर संहत संबंधी भिक्षा में संघट्टा दोष टल सकता हो तो विवेक पूर्वक ले सकते हैं। 6. दायक दोष जो भिक्षा देने के अयोग्य हों अथवा अविधि पूर्वक दे रहे हों उनके हाथ से भिक्षा ग्रहण करना, दायक दोष है। पिण्डनियुक्ति में चालीस व्यक्तियों को भिक्षा के अयोग्य माना गया है। इनमें कुछ दोष व्यक्तियों से सम्बन्धित हैं तथा कुछ सावध क्रियाओं से सम्बद्ध होने के कारण उपचार से दायक के साथ जुड़ गए हैं। निषिद्ध दायकों के नाम इस प्रकार हैं -218 1. बाल- आठ वर्ष से कम उम्र का बालक जो आहारादि देने का परिमाण या विधि न जानता हो, उससे भिक्षा ग्रहण करना बाल दायक दोष है। 2. अतिवृद्ध (स्थविर)- सत्तर वर्ष (अन्य मत से साठ वर्ष) से अधिक आयु वाला स्थविर कहलाता है, उसके हाथ से भिक्षा लेना भी दायक दोष है। इस वय में हाथ आदि काँपने लगते हैं अत: खाद्य सामग्री गिरने की संभावना रहती है। 3. मत्त- जो नशा किया हुआ हो। 4. उन्मत्त- जो भूत आदि से आविष्ट हो। 5. कंपमान- जिसका शरीर वृद्धावस्था या रोग आदि के कारण काँप रहा हो।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy