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________________ 128... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन 4. भिक्षा लेते समय भी अशंकित और करते समय भी अशंकित। इस चतुर्भगी में चौथा भंग विशुद्ध है। पिण्डनियुक्तिकार ने इन चारों भंगों का विस्तार से स्पष्टीकरण किया है। कई बार गृहस्थ के द्वारा दी जाने वाली प्रचुर भिक्षा सामग्री को देखकर मुनि लज्जावश पूछताछ करने में समर्थ नहीं होता। अतः शंका होने पर भी भिक्षा ग्रहण कर लेता है और उसी अवस्था में उसका उपभोग भी कर लेता है, यह प्रथम भंग की व्याख्या है। दूसरे भंग में मुनि भिक्षा ग्रहण करते समय शंकाग्रस्त रहता है लेकिन उपभोग करते समय दूसरा मुनि स्पष्टीकरण कर देता है कि उस घर में किसी अतिथि के लिए प्रचुर खाना बना था अथवा किसी अन्य के घर से आया था, यह सुनकर वह नि:शंकित होकर उस भिक्षा का उपभोग करता है, यह चतुर्भंगी का दूसरा विकल्प है। तीसरे विकल्प में गुरु के समक्ष आलोचना करते हुए अन्य मुनियों के पास भी वैसी ही खाद्य सामग्री देखकर मन में शंका हो जाती है अत: नि:शंकित रूप से ग्रहण की गई भिक्षा को भी वह शंकित अवस्था में उपभोग करता है। चौथे भंग में दोनों स्थितियों में शंका नहीं होती अत: वह विशुद्ध होने से एषणीय है।198 2. प्रक्षित दोष ___सचित्त पानी आदि पदार्थों से लिप्त हाथ या चम्मच आदि से भिक्षा ग्रहण करना प्रक्षित दोष है।199 समवायांगसूत्र में चौदहवाँ तथा दशाश्रुतस्कन्धसूत्र में इसे पन्द्रहवाँ असमाधि स्थान माना है।200 टीकाकार मलयगिरि ने प्रक्षित के स्थान पर प्रक्षिप्त शब्द का प्रयोग भी किया है।201 यह दोष दो प्रकार का कहा गया है- 1. सचित्त प्रक्षित और 2. अचित्त प्रक्षित। सचित्त वस्तु से लिप्त हाथ आदि द्वारा आहार ग्रहण करना, सचित्त प्रक्षित दोष है तथा अचित्त वस्तु से लिप्त हाथ आदि द्वारा आहार प्राप्त करना, अचित्त म्रक्षित है। सचित्त म्रक्षित दोष तीन प्रकार का माना गया है- 1. पृथ्वीकाय म्रक्षित 2. अप्काय म्रक्षित 3. वनस्पतिकाय प्रक्षित।202 सचित्त पृथ्वीकाय प्रक्षित- शुष्क या आर्द्र सचित्त पृथ्वीकाय से लिप्त हाथ या पात्र से भिक्षा लेना पृथ्वीकाय म्रक्षित है। अप्काय प्रक्षित- शुष्क या आर्द्र सचित्त रसों से युक्त हाथ या पात्र से भिक्षा ग्रहण करना अप्काय प्रक्षित है। सचित्त अप्काय प्रक्षित दोष चार भेद वाला है203_
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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