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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...127 जोड़ दिया। निशीथसूत्र में भी उत्पादना के 15 दोषों में मूलकर्म का निर्देश नहीं है। परिणाम- मूलकर्म सम्बन्धी भिक्षा प्राप्त करने पर गर्भस्तंभन एवं गर्भपात से सम्बन्धित व्यक्ति को सच्चाई ज्ञात हो जाये तो उसे साधु के प्रति भयंकर रोष पैदा हो सकता है और साधु का द्वेषी भी बन सकता है। यदि मूलकर्म सम्बन्धित व्यक्ति की मृत्यु हो जाये तो साधु को हिंसा का दोष लगता है। गर्भाधान कराने एवं योनि को अविकृत बनाने में जीवन भर अब्रह्म सेवन का दोष लगता है। यदि पुत्र जन्मे तो अनुराग वश साधु को आधाकर्मी भिक्षा दे सकता है तथा योनि विकृत बने तो भोगान्तराय का बन्धन होता है। एषणा के दस दोष एषणा का शाब्दिक अर्थ है खोज करना। यहाँ एषणा का तात्पर्य आहार शोधन से है। एषणा का दूसरा नाम ग्रहणैषणा है। शंका आदि दोषों से रहित आहार ग्रहण करना ग्रहणैषणा कहलाता है।191 पंचवस्तुक में एषणा शब्द का प्रयोग ग्रहणैषणा के संदर्भ में किया गया है। वहाँ एषणा, गवेषणा, अन्वेषणा और ग्रहण को एकार्थक माना है।192 उद्गम के दोष गृहस्थ से तथा उत्पादना के दोष साधु से सम्बन्धित होते हैं लेकिन एषणा के दस दोष साधु और गृहस्थ दोनों से सम्बन्धित होते हैं। एषणा में भी शंकित और भावत: अपरिणत- ये दोनों दोष साधु के द्वारा तथा शेष आठ दोष नियमत: गृहस्थ के द्वारा लगते हैं।193 ग्रहणैषणा के दस दोषों के नाम इस प्रकार हैं- 1. शंकित 2. प्रक्षित 3. निक्षिप्त 4. पिहित 5. संहत 6. दायक 7. उन्मिश्र 8. अपरिणत 9. लिप्त और 10. छर्दित।194 1. शंकित दोष आधाकर्म आदि दोष की संभावना होने पर भी भिक्षा ग्रहण करना, शंकित दोष है।195 दशवैकालिक सूत्र में स्पष्ट कहा गया है कि मुनि कल्प और अकल्प की दृष्टि से शंका युक्त आहार को ग्रहण न करे।196 शंकित के विषय में निम्न चार विकल्प बनते हैं1971. भिक्षा लेते समय शंकित और करते समय भी शंकित। 2. भिक्षा लेते समय शंकित किन्तु करते समय अशंकित। 3. भिक्षा लेते समय अशंकित किन्तु करते समय शंकित।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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