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________________ 110... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन आचीर्ण अनाचीर्ण देश (क्षेत्र) उत्कृष्ट मध्यम जघन्य उत्कृष्ट मध्यम जघन्य वाटक देशदेश (गृह) गृहान्तर साही निवेशन (गली) जंघा वाहन नाव तरणकाष्ठ तुम्बा गृह - - निशीथ नगृहान्तर स्वग्राम परग्राम स्वग्राम परग्राम जलपथ स्थलपथ जंघा - नाव नोनिशीथ उडुप जंघा वाहन 1. स्वग्राम विषयक जिस गाँव में साधु निवास करते हों उस गाँव से ही आहार लाकर देना, स्वग्राम विषयक अभ्याहृत दोष है। 2. परग्राम विषयक अन्य गाँव से आहार आदि लाकर देना, विषयक दोष है। (i) निशीथ स्वग्राम अभ्याहृत - कोई श्राविका साधु से प्रतिलाभित होने के लिए उपाश्रय में लड्डू आदि लेकर आये, किन्तु मुनि को आशंका न हो इसलिए यह कहे कि भगवन् ! मैं अमुक स्वजन को उपहार देने गई थी, उन्होंने रोष वश उसे स्वीकार नहीं किया। मैं वापस घर ले जा रही हूँ और आपको सहज वंदन करने आई हूँ, यदि खपत हो तो लाभ दीजिए, ऐसा कहकर आहार देना, निशीथ स्वग्राम विषयक अभ्याहत दोष है । 104 स्वदेश परदेश जलपथ स्थलपथ परग्राम (ii) निशीथ परग्राम अभ्याहृत निशीथ परग्राम अभ्याहत दोष को नियुक्तिकार ने एक कथा के माध्यम से विस्तार से स्पष्ट किया है। सेठ धनावाह के यहाँ विवाह आदि के अवसर पर अधिक मोदक बच गए तो उसने सोचा कि
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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