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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...109 (ii) लोकोत्तर तद्रद्रव्य अन्यद्रव्य विषयक- एक साधु दूसरे साधु के साथ वस्त्र आदि का परिवर्तन करता है, वह लोकोत्तर परावर्त है । साधु के द्वारा एक वस्त्र देकर दूसरा वस्त्र लेना तद्द्रव्यविषयक लोकोत्तर परिवर्तित दोष है तथा वस्त्र देकर पुस्तक लेना अन्यद्रव्यविषयक लोकोत्तर परावर्त है। परिणाम - लोकोत्तर परावर्त दोष का सेवन करने पर वस्त्र आदि का परिवर्तन करते समय ग्रहणकर्ता साधु कह सकता है कि यह न्यून वस्त्र है, मेरा वस्त्र बड़ा था, यह वस्त्र जीर्ण प्राय: है, कर्कश स्पर्श वाला, मोटे धागे से निष्पन्न, छिन्न, मलिन शीत से रक्षा करने में असमर्थ और बदरंग है, मेरा वस्त्र ऐसा नहीं था। इसी प्रकार किसी कुटिल साधु के द्वारा गलत सिखाने पर भी वह विपरीत बुद्धि वाला हो सकता है अतः यदि किसी साधु के पास प्रमाणोपेत वस्त्र है और दूसरे के पास नहीं है तो गुरु के सामने परिवर्तन किया जाए, जिससे बाद में कलह की संभावना न रहे 198 11. अभ्याहत दोष अभ्याहृत साधु के लिए अपने या अन्य गाँव से आहार आदि लाकर देना, दोष है। 99 इसे आहृत 100 और अभिहत दोष भी कहा जाता है। अभिहत दोष दो प्रकार का होता है- आचीर्ण और अनाचीर्ण। इन दोनों के दो-दो भेद हैं (i) आचीर्ण - यह दोष गृह सम्बन्धी और क्षेत्र सम्बन्धी ऐसे दो प्रकार का होता है। (ii) अनाचीर्ण- यह दोष प्रच्छन्न और प्रकट के भेद से दो प्रकार का है। इसमें प्रच्छन्न और प्रकट के भी दो-दो भेद हैं- 1. स्वग्राम विषयक और 2. परग्राम विषयक। 101 अनाचीर्ण अभ्याहृत दोष के निम्न दो भेद भी हैं- निशीथ अनाचीर्ण अभ्याहत और नो निशीथ अनाचीर्ण अभ्याहृत । निशीथ का अर्थ है- जहाँ दायक अपने आशय को प्रकट न करे तथा नो निशीथ का तात्पर्य है - जहाँ दाता अपने आने का प्रयोजन स्पष्ट कर दे। 102 प्रवचनसारोद्धार की टीका में अभ्याहत भेद-भेद इस प्रकार वर्णित हैं- 103
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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