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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ... 107 सुनकर अन्य व्यक्तियों द्वारा निर्माल्य गंध आदि की याचना करने पर यदि उन सभी को न दिया जाए तो कलह की संभावना रहती है | 86 (ii) आत्मभाव क्रीत - धर्मकथा, तपस्या, वाद-विवाद, ज्योतिष विद्या, आतापना, जाति, कुल, गण, कर्म और शिल्पादि के द्वारा आकर्षित कर भिक्षा प्राप्त करना, आत्मभाव क्रीत दोष है | 87 दोष- आत्मभाव क्रीत सम्बन्धी आहार लेने पर कर्म निर्जरा में हेतुभूत चारित्रिक आराधना निष्फल हो जाती है | 88 (iii) परद्रव्य क्रीत- गृहस्थ के द्वारा साधु के निमित्त खरीदा गया आहार आदि ग्रहण करना परद्रव्य क्रीत दोष है। दोष- इस दोष सम्बन्धी वस्तु के ग्रहण करने पर छह काय जीवों की विराधना होती है। (iv) परभाव क्रीत - मंखादि साधुओं की तरह पट आदि दिखाकर अथवा धर्मकथा आदि के द्वारा लोगों को प्रभावित कर आहार आदि प्राप्त करना, परभाव क्रीत दोष है । दोष- परभाव क्रीत दोष युक्त वस्तु ग्रहण करने पर निम्न तीन दोष लगते हैं- क्रीत, अभिहृत और स्थापित। इससे जैन धर्म की निन्दा भी होती है। 89 परिणाम – भगवतीसूत्र के अनुसार क्रीतकृत आहार को अनवद्य मानने वाला, अनवद्य मानकर उसका परिभोग करने वाला तथा उसे पर्षदा में अनवद्य प्ररूपित करने वाला मुनि यदि उसकी आलोचना नहीं करता है तो वह विराधक है 190 9. प्रामित्य दोष उद्गम का नौवां दोष प्रामित्य है । प्रामित्य का अर्थ है- उधार लेना। किसी से उधार लेकर आहार आदि देना प्रामित्य दोष है। टीकाकार मलयगिरि ने 'पामिच्च' की संस्कृत छाया अपमित्य की है। 91 दिगम्बर साहित्य में प्रामित्य दोष के स्थान पर ऋण दोष का उल्लेख है। 92 यह दो प्रकार का होता है - वृद्धि सहित (ब्याज सहित) और वृद्धि रहित । इसका तात्पर्य यह है कि जब दाता यह कहकर ओदन आदि लाए कि पुनः इससे अधिक तुमको वापस दे दूंगा तो वह वृद्धि सहित दोष है तथा जब वह यह निश्चित कर लेता है कि इतना ही भोजन मैं तुमको बाद में दे दूंगा, तो यह वृद्धि रहित दोष कहलाता है। 93
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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