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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...99 को अपवित्र एवं अग्राह्य बना देता है। जिनशासन में आधाकर्मी को भी अग्राह्य होने से पूति कहा गया है और आधाकर्म से संसृष्ट आहार को भी पूति कहा गया है। आधाकर्मादि दोषों से दूषित आहार के अवयवों से संयुक्त थाली, कटोरी, चम्मच आदि से आहार लेना भी पूतिकर्म दोष वाला कहलाता है। . मूलाचार में पूति दोष के पाँच भेद निर्दिष्ट हैं- 1. चुल्ली 2. उक्खा (ऊखल) 3. दर्वी 4. भाजन और 5. गंध। अनगार धर्मामृत में पूतिदोष के दो भेदों का उल्लेख है- अप्रासुक मिश्र और कल्पित। अप्रासुक द्रव्य से युक्त प्रासुक द्रव्य अप्रासुक मिश्र पूतिकर्म कहलाता है तथा जब तक यह भोजन साधु को न दिया जाए, तब तक इसका कोई उपयोग न करे, यह कल्पित नाम का दूसरा पूति दोष है।42 भावपूति दोष दो प्रकार का कहा गया है- बादर और सूक्ष्म। (i) सूक्ष्मपति- आधाकर्मी आहार पकाते समय ईंधन द्वारा उठने वाले धुएँ से जो वस्तु स्पृष्ट होती है, वह सूक्ष्म पूति है। उस वस्तु को ग्रहण करने पर सूक्ष्म पूति दोष लगता है। इसी प्रकार आधाकर्मी आहार आदि के गंध पुद्गलों अथवा अन्य सूक्ष्म अवयवों से स्पृष्ट वस्तु भी पूति दोष युक्त कहलाती है। (ii) बादरपूति - निशीथभाष्य में इसके तीन प्रकार वर्णित हैं- आहार, उपधि और वसति।43 1. आहार पूतिकर्म - यह दोष दो प्रकार से होता है उपकरण पूति- वस्तु को पकाने आदि में चूल्हा तथा परोसने में चम्मच आदि उपकारी होने से उपकरण कहे जाते हैं। आधार्मिक से मिश्रित चूल्हा तथा आधाकर्म आहार से स्पृष्ट थाली और चम्मच उपकरण पूति है। ऐसे साधनों से निर्मित आहार ग्रहण करना उपकरण पतिकर्म दोष है।44 आहार पूति- जिस पात्र में आधाकर्मी आहार पकाया गया हो उसी पात्र में गृहस्थ ने स्वयं के लिए निर्मित आहार डालकर मुनि को दिया हो तो वह आहार पूतिदोष युक्त कहलाता है। इसी प्रकार यदि चम्मच आधाकर्मी नहीं है, किन्तु उससे आधाकर्म आहार को हिलाकर फिर शुद्ध आहार दिया जाए तो वह शुद्ध आहार भी आहार पूति कहलाता है।45 यहाँ विमर्शनीय यह है कि केवल आधाकर्म से मिश्रित शुद्ध आहार ही पूति दोष से युक्त नहीं होता, अपितु पूतिदोष युक्त आहार से संस्पर्शित शुद्ध आहार भी पूतिदोष से युक्त बन जाता है।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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