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________________ वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ... 65 टीकाकार के मतानुसार यदि मुनि उनके पीछे चलता है तो उनके द्वारा ईर्या समिति पालन नहीं करने का दोष साधु को लगता है, जिनशासन की लघुता होती है और उन शाक्यादि भिक्षुकों में अभिमान जागृत हो सकता है कि ऐसे त्यागी संत भी हमारे पीछे चलते हैं। यदि वह उनके आगे चले तो उन संन्यासियों को द्वेष उत्पन्न हो सकता है और यदि साथ चलने वाला अन्य परम्परा का गृहस्थ सरल प्रकृति का न हो तो अपनी परम्परा के श्रमणों को पीछे चलते हुए देखकर उसे भी प्रद्वेष हो सकता है। एक साथ कई साधुओं को आया देखकर गृहस्थ को आहार आदि देने में भी मुश्किल हो सकती है अत: अहिंसक साधु को उत्सर्गतः अन्य संन्यासियों एवं गृहस्थों के साथ भिक्षा हेतु गमन नहीं करना चाहिए। गृहस्थ के यहाँ भिक्षा हेतु प्रविष्ट हुए साधु को यह ज्ञात हो जाए कि मुझे दिया जाने वाला आहार अग्रपिण्ड से सम्बन्धित है तो वह उसे ग्रहण न करें | 29 पूर्वकाल में आहारादि निर्मित हो जाने के बाद उसमें से अमुक भाग देवीदेवताओं के निमित्त या दानादि के निमित्त अलग निकालकर पहले से रख दिया जाता था, उसके पश्चात भोजन का उपभोग किया जाता था । निर्मित भोजन में से पहले ही निकाल दिया गया अग्रपिण्ड साधु-साध्वियों के लिए ग्राह्य नहीं होता है, क्योंकि वह भोजन पिण्ड देवी-देवताओं के निमित्त, संन्यासियों के दान निमित्त, प्रसाद रूप में बांटने के निमित्त, भिखारियों में वितरित करने निमित्त अलग से निकाला जाता है, उसमें से कुछ भी लेने पर उनसे तत्सम्बन्धित व्यक्तियों के आहार में बाधा या कमी आ जाती है इससे अन्तराय का दोष लगता है। • भिक्षार्थ गया हुआ साधु सचित्त संसृष्ट हाथों से भिक्षा ग्रहण न करें, क्योंकि संसृष्ट हाथों से दी गई भिक्षा चारित्र धर्म का हनन करती है। निशीथभाष्य की चूर्णि में संसृष्ट के 18 प्रकार बताये गये हैं 1. पूर्व कर्म - साधु को आहार देने हेतु हाथ अथवा पात्र आदि धोना। 2. पश्चात्कर्म - साधु को आहार देने के पश्चात हाथ अथवा पात्र आदि धोना । 3. उदकार्द्र – बूंदे टपकती हो ऐसे गीले हाथ से भिक्षा देना। 4. सस्निग्ध - अच्छी तरह से न सूखे हुए थोड़े गीले हाथों से भिक्षा देना ।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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