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________________ x... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन आपश्री पंचायती मन्दिर ट्रस्ट मंडल एवं जैन भवन आदि में अध्यक्ष पद पर मनोनीत हैं वहीं जिनरंगसूरि पौशाल ट्रस्ट, जौहरी साथ, कोलकाता जौहरी मंडल आदि में मन्त्री आदि विशिष्ट पदों पर आसीन हैं। खरतरगच्छ महासंघ में भी आप पूर्वी भारत का नेतृत्व करते हुए उपाध्यक्ष पद पर रह चुके हैं। इसी प्रकार अनेक अन्य संस्थाओं से भी आप जुड़े हुए हैं। __ आपका विवाह कोलकाता के सुप्रसिद्ध समाजरत्न श्री मुकुन्दीलालजी की सुपुत्री श्री कान्तिलालजी मुकीम की बहिन प्रमिलाजी से हुआ। विमलचंदजी के लिए कह सकते हैं कि 'धन्यः स पुरुषो भुवि' वे इस धरती पर धन्य पुरुष हैं क्योंकि प्रमिलाजी के रूप में उन्हें एक ऐसी जीवन संगिनी मिली है जिनका पतिव्रत अनोखा, प्रेम अगाध एवं श्रद्धा अपरिमित हैं। आप दोनों माता-पितावत नगर विराजित सभी साधु-साध्वियों का ध्यान रखते हैं। श्री जिनदत्तसूरि मण्डल आपकी ही छत्र छाया में कली से गुलाब बनकर विकसित हो चुका है। गुरु भक्ति आपके रोम-रोम में रक्त बनकर प्रवाहित होती है। पूज्या शशिप्रभा श्रीजी म.सा. को आप धर्म संस्कार दात्री माता के रूप में सम्मान देती हैं तो पूज्या मणिप्रभा श्रीजी म.सा. को गुरु रूप मानती हैं। उनके नाम श्रवण मात्र से आपकी आँखों से श्रद्धा मेघ झरने लगते हैं। आप एक कुशल गृहिणी एवं सुदृढ़ समाज सेविका अपने सुपुत्र विकास और विवेक को भी आपने ऐसे ही संस्कारों से नवाजा है। पत्रवधु रूपाजी एवं शालूजी भी धर्मपरायणा, समन्वयवादी एवं सुज्ञ सन्नारियाँ हैं। परम विदुषी साध्वी सौम्यगुणाजी पर आपका पुत्रीवत स्नेह रहा है। आपने कोलकाता अध्ययन प्रवास के दौरान उनका एक माता-पिता के समान ध्यान ही नहीं रखा अपितु उन्हें हर तरह की चिंताओं से मुक्त भी रखा। साध्वीजी के विराट शोध कार्य को पूर्ण करवाने में आपकी अविस्मरणीय भूमिका रही है। अपनी पुण्यानुबंधी लक्ष्मी का उपयोग आप सत्कार्यों में सदा करते रहते हैं। आज आप ही के सहयोग से यह कृति प्रकाशित होने जा रही है। सज्जनमणि ग्रन्थमाला आपके आत्मीय सहयोग के लिए सदा आभारी रहेगा।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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