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________________ श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्ष...11 17. वचन की सत्यता हो 18. काया की सत्यता हो 19-24. षट्काय जीवों का प्रतिपालक हो 25. तीन गुप्ति का धारक हो 26. सहनशील और 27. संलेखना धारक हो। ___ समवायांगसूत्र के अनुसार मुनि के लिए अनिवार्य 27 गुण इस प्रकार हैं 33_ ___1-5. पंच महाव्रतों का पालन 6-10. पंचइन्द्रियों का संयम 11-15. चार कषायों का परित्याग 16. भावसत्य 17. करणसत्य 18. योगसत्य 19. क्षमा 20. विरागता 21-24. मन, वचन और काया का निरोध 25. ज्ञान, दर्शन और चारित्र से सम्पन्नता 26. कष्ट सहिष्णुता और 27. मारणान्तिक कष्टों को सहन करना। ___ प्रवचनसारोद्धार के अनुसार 27 गुण निम्न हैं-34 1-5. पाँच महाव्रत का अनुपालन 6. रात्रिभोजन विरति 7-12. पृथ्वी आदि छ:काय जीवों का संरक्षण 13-17. पाँच इन्द्रियों का संयम 18. लोभ निग्रह 19. क्षमा 20. भावविशुद्धि 21. क्रियाविशुद्धि 22. संयमविशुद्धि 23-25. मन-वचन-काया के अशुभ व्यापार का त्याग 26. वेदना सहन और 27. उपसर्ग सहन। दिगम्बर परम्परा में साधु के निम्नोक्त 28 मूलगुण माने गये हैं।35 1-5. पाँच महाव्रत 6-10. पाँच समितियों का परिपालन 11-15. पाँच इन्द्रियों का संयम 16-21. छह आवश्यक कृत्य 22. केशलोच 23. नग्नता 24. अस्नान 25. भूमिशयन 26. अदन्त धावन 27. खड़े रहकर भोजन ग्रहण करना और 28. एक समय भोजन करना। इस प्रकार हम देखते हैं कि जहाँ श्वेताम्बर परम्परा में 27 मूलगुणों में आन्तरिक विशुद्धि को अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है वहाँ दिगम्बर परम्परा में 28 मूलगुणों में बाह्य एवं आभ्यन्तर दोनों पक्षों पर बल दिया गया है, किन्तु मनोशुद्धि दोनों परम्पराओं में स्वीकृत है।36 श्वेताम्बर परम्परा में जैन मुनि के सत्तर मूलगुण और सत्तर उत्तरगुण भी माने गये हैं। यह प्रत्येक गुण मुनि के लिए एक नियम रूप होता है। अत: प्रत्येक नियम की अपेक्षा 140 प्रकार से अतिचार (दूषण) लगने की सम्भावना रहती है। अतिचार का अर्थ है-गृहीत प्रतिज्ञा को खण्डित करने हेतु तत्पर होना
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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