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________________ 364... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन का प्रक्षालन करें और 3. अधिक जल का उपयोग करें। यदि स्त्री-नपुंसक संलोकवाली भूमि प्राप्त न हो तो तिर्यञ्च सम्बन्धी पुरुष, नपुंसक और स्त्री आपातवाली भूमि में जायें। उसमें भी जुगुप्सित और दप्तचित्त आपातवाली भूमि में न जायें। इसके अभाव में स्त्री - नपुंसक के आपातवाली भूमि में जायें। स्त्री और नपुंसक के दंडिक, कौटुम्बिक और साधारण - ये तीन भेद हैं। इनमें भी अशौचवादी स्त्री - नपुंसक आपातवाली भूमि में जायें। इसके अभाव में शौचवादी स्त्री-नपुंसक आपातवाली भूमि में जायें। इन पूर्वोक्त भूमियों में स्थंडिल के लिए जाते समय खांसी आदि की आवाज करते-करते अथवा परस्पर बोलतेबोलते जायें ताकि अन्य लोगों को शंका न हो तथा व्याकुल चित्तपूर्वक शीघ्रता से जायें। इसमें अपान प्रक्षालन एवं अधिक जलग्रहण की विधि भी पूर्ववत करें। ये मलोत्सर्ग की आपवादिक भूमियाँ हैं। स्थंडिल भूमि के आवश्यक कृत्य आचार्य हरिभद्रसूरि ने मलोत्सर्ग करने से पूर्व कुछ आवश्यक कृत्यों का विवेचन किया है। वे निम्नोक्त हैं 38 दिशावलोकन - पंचवस्तुक के अनुसार मल- विसर्जन करने के स्थान पर खड़े होकर चारों दिशाओं का अवलोकन करे कि कोई आ तो नहीं रहा है ? अथवा कोई देख तो नहीं रहा है? उसके बाद मलोत्सर्ग के लिए बैठें। दिशा विचार - मल विसर्जन करते समय पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर पीठ करके नहीं बैठे, क्योंकि लोक में इन दिशाओं को पूज्य माना गया है। रात्रि में दक्षिण दिशा की ओर पीठ करके नहीं बैठे, क्योंकि 'रात्रि में दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की तरफ निशाचर (राक्षस) आदि जाते हैं' ऐसी लोकवाणी है अत: दक्षिण दिशा की ओर पीठ करने से लोक विरोध होता है। किसी ने कहा है कि जो मनुष्य दिन में उत्तर दिशा की तरफ और रात्रि में दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके मल-मूत्र का विसर्जन करता है उसकी आयुष्य में वृद्धि होती है। जिस दिशा की ओर से पवन आ रहा हो, उस दिशा की ओर भी पीठ करके नहीं बैठें। इस नियम का पालन न करने पर नाक में (विष्ठा की गंध जाने से) मस्सा हो सकता है। जिस दिशा की ओर गाँव हो उस तरफ भी पीठ करके नहीं बैठें, अन्यथा लोक निन्दा होती है।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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